दोस्तों विरासत में मिली सफलता के किस्से आए दिन हमारे समाज में हम से रूबरू होते रहते हैं। परंतु “प्रतिभा का स्थानांतरण विरासत की पुरानी प्रथा अनुसार नहीं किया जा सकता” इस कथन के संदर्भ में बात अगर फिल्मी जगत के अलावा क्रिकेट जगत की करें तो हमें ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जहां प्रतिभा को विरासत में सौंपने की कईं नाकाम कोशिशें को अंजाम दिया गया।
आपके सामने क्रिकेट जगत से संबंधित पांच ऐसे चेहरों का वर्णन करेंगे, जिन्होंने क्रिकेट खेल की प्रतिभा को विरासत में अर्जित करने की नाकाम कोशिशों को यथार्थ करने का प्रयत्न किया।
रोहन गावस्कर
जी हां दोस्तों भारतीय क्रिकेट के पूर्व दिग्गज खिलाड़ी सुनील गावस्कर के बेटे, रोहन गावस्कर भी अपने हाथ क्रिकेट में आज़मा चुके हैं लेकिन रोहन का क्रिकेट करियर अपने पिता के क्रिकेट करियर से बिल्कुल विपरीत रहा।जहां एक और सुनील गावस्कर ने 80 के दशक में भारतीय क्रिकेट टीम का इंजन बनकर पूरी टीम को जीत की पटरी पर दौड़ाया था ।
वही उनके बेटे रोहन गावस्कर क्रिकेट में मात्र कुछ गिनी चुनी उपलब्धियां ही अपने नाम कर पाए।आपको बता दें बंगाल की ओर से घरेलू क्रिकेट में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद रोहन गावस्कर का चयन भारतीय क्रिकेट टीम में साल 2004 के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर एक ऑलराउंडर के तौर पर हो गया
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लेकिन क्रिकेट खेल में अपनी सीमित कुशलता के चलते रोहन भारतीय क्रिकेट टीम की जर्सी ज्यादा वक्त तक नहीं पहन पाए और मात्र 11 एकदिवसीय मैचों में अपना सीमित हुनर दिखाकर भारतीय क्रिकेट के गलियारों से रोहन गावस्कर सदा के लिए गायब हो गए।
माली रिचर्ड्स
सर विव रिचर्ड्स के बेटे माली रिचर्ड्स का। विव रिचर्ड्स एक ऐसा महान खिलाड़ी जिसने कैरेबियाई धरती से निकलकर, क्रिकेट के मैदानों पर ना जाने कितने यादगार लम्हों को चरितार्थ किया।70,80 के दशक में तेज गेंदबाजों से बिना हेलमेट, आंख से आंख लड़ाने वाले इस दिग्गज खिलाड़ी का क्रिकेट सफर किसी परिचय का मोहताज नहीं है।
लेकिन इसके विपरीत सर विव रिचर्ड्स के बेटे माली रिचर्ड्स का क्रिकेट सफर कुछ खास नहीं रहा .माली रिचर्ड्स पहली बार क्रिकेट सुर्खियों में तब आए जब माली ने साल 2003 में Antigua के खिलाफ 319 रन धमाकेदार अंदाज से एक अंडर-19 क्रिकेट मैच में जड़ डाले। इस पारी के बाद ही माली रिचर्ड्स की तुलना उनके पिता विव रिचर्ड्स से करी जाने लगी,
लेकिन प्रथम श्रेणी क्रिकेट में माली रिचर्ड्स के डेब्यू के साथ ही यह तुलना बिल्कुल निराधार और व्यर्थ बनकर विश्व के सामने प्रकट हुई। दोस्तों माली रिचर्ड्स ने 15 प्रथम श्रेणी व 2 लिस्ट ए मैचों में वेस्टइंडीज की ओर से अपना प्रतिनिधित्व किया जहां प्रथम श्रेणी में उनके कुल रन 275 रहे। वहीं लिस्ट ए क्रिकेट में उनके करियर का कुल स्कोर मात्र 1 रन ही रहा।
माली रिचर्ड्स क्रिकेट में अपने सीमित हुनर के चलते वेस्टइंडीज की अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट टीम में कभी जगह नहीं बना पाए और क्रिकेट मैदान पर अपने पिता की ख्याति के साथ उतरे माली रिचर्ड्स विश्व क्रिकेट पटल पर कभी भी अपना स्थायित्व कामयाब नहीं बना पाए।
हैमिश रदरफोर्ड
न्यूजीलैंड की टीम से मध्यक्रम पर बल्लेबाजी करते हुए केन रदरफोर्ड ने कई बार कीवी टीम को जीत की फिनिशिंग लाइन तक पहुंचाया, साल 1992 के वर्ल्ड कप में जहां न्यूजीलैंड का कारवां सेमीफाइनल तक पहुंचा था वहां केन रदरफोर्ड कीवी टीम की मुख्य भूमिका में गतिमान रहे थे।अपने पिता के नक्शो कदम पर चलते हुए हैमिश रदरफोर्ड ने भी क्रिकेट खेल की राहों को चुन लिया
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और अपने डेब्यू टेस्ट मैच में इंग्लैंड जैसी धाकड़ बॉलिंग लाइनअप के खिलाफ 171 रन ठोक डाले, इस मैच में हैमिश रदरफोर्ड ने इंग्लैंड के स्टुअर्ट ब्रॉड और जेम्स एंडरसन जैसे विश्व स्तरीय गेंदबाजों को आड़े हाथों लिया था। टेस्ट क्रिकेट में अपने इस प्रदर्शन के बाद हैमिश रदरफोर्ड अगली लगातार 30 टेस्ट पारियों में बुरी तरह फ्लॉप रहे। और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में उनका पत्ता कीवी टीम से काट दिया गया।
रिचर्ड हटन
अब हमारी इस फेहरिस्त में चौथा नाम जुड़ता है सर लैन हटन के बेटे रिचर्ड हटन का। 50 के दशक में इंग्लैंड क्रिकेट टीम के बैटिंग पिलर सर लैन हटन इंग्लैंड के महान बल्लेबाजों में शुमार होते हैं।सर लैन हटन की कप्तानी में ही इंग्लिश टीम ने साल 1953 में 19 साल से चल रहे सूखे को खत्म करते हुए The Ashes ट्रॉफी अपने नाम की थी। अपने पिता लैन हटन के पद चिन्हों का अनुसरण करते हुए ही उनके बेटे रिचर्ड हटन ने भी क्रिकेट के मैदान को अपने करियर के रूप में चुन लिया।
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अपने डेब्यू टेस्ट 17 जून 1971 ko पाकिस्तान के खिलाफ अर्थ शतक लगाते हुए रिचर्ड हटन ने अपनी क्रिकेट पारी का आगाज कियालेकिन अगले चार टेस्ट मैचों में लगातार फेलियर हासिल करने के बाद रिचर्ड हटन को इंग्लैंड टीम से ड्रॉप होना पड़ा और रिचर्ड का क्रिकेट करियर अपने पिता से बिल्कुल विपरीत महज पांच मैचों के सफर में ही थम गया।
स्टूअर्ट बिन्नी
अब हमारी इस फेहरिस्त में पांचवा और अंतिम नाम जुड़ता है रॉजर बिन्नी के बेटे स्टूअर्ट बिन्नी का | दोस्तों भारतीय क्रिकेट टीम में बॉलिंग ऑलराउंडर की कमी हमेशा से ही महसूस होती रही है। और भारतीय टीम के कुछ अच्छे बॉलिंग ऑलराउंडर की बात की जाए तो निश्चित ही रॉजर बिन्नी का नाम ऊपर की पंक्तियों में शामिल रहेगा।साल 1983 के विश्वकप फतेह में रोजर बिन्नी के महत्वपूर्ण योगदान को इतिहास के पन्नों से मिटाया नहीं जा सकता
183 जैसे low score को डिफेंड करते हुए रोजर बिन्नी की तरफ से डाले गए सफल और किफायती बॉलिंग स्पैल को हमेशा याद किया जाता रहेगा।क्रिकेट में मिली रॉजर बिन्नी की कामयाबी को देखते हुए उनके बेटे स्टुअर्ट बिन्नी ने भी एक पेशेवर क्रिकेट खिलाड़ी बनने का निश्चय किया। स्टुअर्ट बिन्नी का अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में डेब्यू साल 2014 में भारतीय टीम से हो गया,
बिन्नी साल 2015 विश्व कप के स्क्वाड में भी चयनित हुए थे हालांकि यहां उन्हें अंतिम ग्यारह में खेलने का मौका नहीं मिला था।स्टुअर्ट बिन्नी भारतीय टीम में प्राप्त मौकों को अच्छे से भुना नहीं पाए और अपनी सामान्य आलराउंडिंग परफॉर्मेंस के चलते बिन्नी अपना नाम कभी भी भारतीय टीम में स्थायी नहीं कर पाए.
और हार्दिक पांड्या जैसे बेहद प्रतिभावान ऑलराउंडर के टीम में शामिल हो जाने से स्टुअर्ट बिन्नी भारतीय टीम से लगातार दूर होते चले गए। स्टुअर्ट बिन्नी का अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट सफर महज छह टेस्ट और 14 एकदिवसीय मैचों तक ही सीमित होकर रह गया।
तो दोस्तों क्रिकेट जगत से जुड़े यह थे कुछ ऐसे नाम जिन्होंने क्रिकेट खेल की प्रतिभा को विरासत में आगे बढ़ाने की नाकाम कोशिशों को अंजाम दिया।