Neeraj Chopra-: जिसने अपनी भुजाओं के दम पर नया अध्याय लिखा
नीरज चोपड़ा, एक नाम जो ना-जाने कितनी ही आँखों को सपने दे चुका होगा।
एक नाम जो आज मशहूर हस्तियों से लेकर चाय की टपरी पर बैठने वाले लड़कों तक, सबकी ज़बान पर है। एक नाम जिसकी मेहनत और ज़िद की कहानियाँ आने वाली पीढ़ियों को सुनाई जायेंगी।
कहानी नीरज चोपड़ा की-
7 अगस्त 2021 को जब उगते सूरज की ज़मीन कहे जाने वाले जापान में दिन ढल रहा था। तो, एक हिंदुस्तानी लड़का अपनी भुजाओं के दम पर नया अध्याय लिख रहा था।
उस लड़के के हाथ से निकले भाले ने 87.58 मीटर की दूरी तय की। इस 87.58 मीटर ने भारत और गोल्ड मैडल के बीच की खाई को पाट दिया।
इस 87.58 मीटर ने 13 साल का लम्बा इंतज़ार ख़त्म किया । ये एक ख़ास तोहफ़ा है हर उस भारतीय के नाम, जिसकी साँसे नीरज के भागते क़दमों के साथ चढ़ने (तेज़ होने) लगी थीं।
ये तोहफ़ा है हर उस खिलाड़ी के नाम, जो देश को पदक दिलाने के लिये अपनी हज़ार ख्वाहिशों का गला घोंट देता है। ये तोहफ़ा है नीरज चोपड़ा के नाम।
तारीख़ थी 3 अगस्त 1996, एटलांटा ओलिंपिक में चोटिल कलाई के साथ एक लड़के ने 44 साल के बाद किसी व्यक्तिगत खेल में भारत के नाम ओलिंपिक मैडल किया। वो खेल था टेनिस, उस खिलाड़ी का नाम था लीएंडर पेस।
भारत में लिएंडर पेस के ब्रॉन्ज़ मैडल का जश्न ऐसे मना कि जैसे वो गोल्ड जीत गये हों।
क्योंकि, उस दौरान भारतीय कई सालों से ओलिंपिक मैडल का सूखा देख रहे थे।
जन्म और पारिवारिक जीवन-
इस ऐतिहासिक दिन के क़रीब डेढ़ साल बाद 24 दिसंबर 1997 को नीरज चोपड़ा का जन्म हुआ। वो नीरज चोपड़ा जिन्होंने आगे चलकर भारत को गोल्ड मैडल जीत का जश्न मनाने का मौका दिया।
हरियाणा में पानीपत ज़िले के छोटे से गाँव, खंद्रा के किसान सतीश कुमार और सरोज देवी के घर जन्मे नीरज चोपड़ा शुरू से ही सबके लाडले थे। सबके प्यार और लाड के चलते नीरज लड़कपन में काफ़ी मोटे हो गये थे
उस वक़्त उनका वज़न क़रीब 80 किलो था। जब वो गाँव में सफ़ेद कुरता पजामा पहनकर निकलते, तो लोग उन्हें ‘सरपंच’ कहकर पुकारते थे। चाचा सुरेंद्र कुमार के कहने पर नीरज पानीपत स्टेडियम जाने लगे।
क्यों बनाया जेवेलिन थ्रो को अपना भविष्य-
जिम में फ़िटनेस ठीक करने के लिए मेहनत करने के बाद, नीरज ग्राउंड में बहुत से खेलों में हाथ आज़माते थे।
इस दौरान ही स्थानीय कोच जीतेन्द्र जगलान के कहने पर नीरज ने जेवेलिन थ्रो यानि भाला फेंक की ट्रेनिंग शुरू की। ट्रेनिंग के पहले दिन से ही नीरज ने जेवेलिन थ्रो में भविष्य बनाने की ठान ली।
नीरज चोपड़ा ने अपनी ज़िन्दगी अब जेवेलिन थ्रो के नाम कर दी थी। लेकिन, गाँव में अच्छे लेवल की ट्रेनिंग मिल पाना मुश्किल हो रही था। इसलिये, नीरज ने पंचकूला शिफ़्ट होने का निर्णय लिया।
पंचकूला में कोच नसीम अहमद की निगरानी में बेहतर ट्रेनिंग और तगड़े कम्पटीशन के बाद नीरज ने अपनी थ्रो को बेहतर किया।
मगर, परेशानी ये थी कि हर भारतीय एथलीट की तरह नीरज चोपड़ा ख़ुद ही प्रतियोगिताओं के लिये तैयारी कर रहे थे।
जोकि, एक नये एथलीट के लिये ख़तरनाक था। ऐसे में भारतीय सेना ने नीरज चोपड़ा की ज़िन्दगी में संकटमोचक का काम किया।
कैसे शुरू हुई अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की तैयारी-
2016 में सेना से सूबेदार के रूप में जुड़ने के बाद से नीरज ने उच्च स्तर की ट्रेनिंग की और खुद को इंटरनेशनल लेवल के लिये तैयार किया।
लेकिन, इसी साल दोस्तों के साथ बास्केटबॉल खेलते हुए नीरज की कलाई टूट गयी और ऐसा लगा कि नीरज का एथलेटिक करियर बस यहीं तक था।
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मगर, नीरज ने उस वक़्त खुद को मानसिक तौर पर मज़बूत किया और ग्राउंड में वापसी करते हुए विश्व पटल पर अपना जौहर दिखाया।
साल 2016 से लेकर 2018 तक नीरज ने वर्ल्ड जूनियर चैंपियनशिप, साउथ एशियन गेम्स, एशियन चैंपियनशिप, कामनवेल्थ गेम्स और एशियन गेम्स में गोल्ड मैडल जीते।
पूरा विश्व नीरज की प्रतिभा देख रहा था। साल 2018 में नीरज को अपने शानदार प्रदर्शन के लिये अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। नीरज अपने भाले के दम पर इतिहास रचने को तैयार थे।
लेकिन, किसी ने सही कहा है ‘जो आसानी से मिल जाये, उसका नाम मंज़िल नहीं’। नीरज का असली इम्तिहान अभी होना बाक़ी था।
दोस्तों, मज़बूत होने के लिये जिस तरह लोहे को भट्टी में तपना पड़ता है।
उसी तरह इतिहास रचने के लिये खिलाड़ी को मुश्किल दौर को पटखनी देना ज़रूरी है। नीरज चोपड़ा के लिये साल 2019 एक ऐसा ही मुश्किल वक़्त था।
जब चोट बन गयी खेल में बाधा-
टोक्यो ओलिंपिक में क्वालीफाई करने के अगले दिन ही नीरज को कोहनी में चोट लगी।
वो चोट कितनी गंभीर थी, उसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा-सकता है। कि, सर्जरी के बाद रिकवर होने में नीरज को क़रीब 16 महीने लगे।
इसके बाद कोरोना काल ने नीरज को और सोचने पर मज़बूर कर दिया।
नीरज ने उस वक़्त को याद करते हुए कहा “हर एथलीट के कैरियर में बुरा वक़्त आज़रूर ता है। मगर, मैंने उस समय को ऐसे लिया, जैसे शेर लम्बी छलांग मारने के लिये दो क़दम पीछे जाता है”। इस जज़्बे और सोच ने नीरज की जादुई वापसी की राह बुनी।
नीरज ने मार्च 2021 में 88.07 की दूरी तय कर अपना राष्ट्रिय रिकॉर्ड सुधारा और ओलिंपिक मैडल की उम्मीद को पँख दिये।
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कैसे पूरा किया करोड़ों भारतीयों का ख्वाब-
दोस्तों, 7 अगस्त 2021 की शाम क़रीब साढ़े चार बजे जब नीरज चोपड़ा जेवलिन लेकर थ्रो करने दौड़े थे। तो, करोड़ों दिलों में एक ही सवाल था।
कि, “ओलिंपिक 2020 में हमने कई मौकों पर दिल जीतें हैं। लेकिन, क्या आज गोल्ड जीत पायेंगे ?” करोड़ों हाथ एक ही दुआ कर रहे थे।
वो दुआ जिसने मीराबाई चानू और रवि दहिया के सिल्वर मैडल, जबकि पी. वी. सिंधु, बजरंग पुनिया, लवलीना बोर्गोहैन और मेंस हॉकी टीम के ब्रॉन्ज़ मैडल तक दम तोड़ दिया था।
मगर, 4 अगस्त को क्वालीफाई राउंड में नीरज की 86.65 मीटर थ्रो ने भारतियों की आँखों को नये ख्वाब दिये। वो ख़्वाब जिन्हें नीरज ने फाइनल में पहली और दूसरी थ्रो में ही पूरा किया।
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नीरज ने 87.03 मीटर की पहली थ्रो के बाद शेर की तरह दहाड़ लगायी और गोल्ड मैडल पर अपना दावा ठोका। मगर, 87.58 मीटर की दूसरी थ्रो में अपना सबकुछ झोंक चुके नीरज ने सिर्फ़ आसमान की ओर इशारा किया।
इसके बाद बचे 11 थ्रोअर लाख कोशिशों के बावजूद भी नीरज के क़रीब नहीं पहुँच पाये, उन्हें इतिहास बनाने से नहीं रोक पाये।
नीरज का भाला सीधे गोल्ड पर लगा। हमने कई सालों बाद एक भारतीय को शीर्ष पर देखा।
अपने देश के सम्मान में बजता राष्ट्रगान सुना। मुझे ये कहने में कोई ग़म नहीं है कि, “उस रोज़ हमने अपनी भीगी आँखों से, एक नया सूरज उगते देखा”।
इस दुआ के साथ कि ये सूरज जो नीरज के भुजाओं के दम पर उगा है। इसकी चमक से 2024 पेरिस ओलिम्पिक में भी देखने को मिले।