वो सितारे जिनका करियर बॉलीवुड की राजनीती के भेट चढ़ गया।
बॉलीवुड में भाई -भतीजावाद , गुटवाद और गन्दी राजनीती उतनी ही पुरानी है। जितना की ये बॉलीवुड। जब कोई नया कलाकार इस दुनिया में कदम रखता है तो वहां सिर्फ उसकी प्रतिभा के दम पर उसे काम नहीं मिलता बल्कि उसे और कई विधाओं में निपुड़ होना पड़ता है।
उसे फिल्म जगत में व्याप्त राजनीती के पहलुओं को समझना पड़ता है। जो ऐसा कर पाते है वो आगे चलकर सफल कहलाते हैं और जो ऐसा नहीं कर पाते वो या तो ये इंडस्ट्री छोड़ देते हैं या फिर ये दुनिया, और जो बचते हैं उनको उसी तरह उपेक्षित रखा जाता है जिस तरह से दूध में पड़ी मक्खी। आज मैं आप सब को कुछ ऐसे ही सितारों से रूबरू करवाऊंगा जिनका उभरता हुआ करियर बॉलीवुड में व्याप्त राजनीति की भेंट चढ़ गया ।
हमारे इस लिस्ट में पहले नंबर पर हैं ।
1– विजय अरोरा।
ये फोटो देखकर शायद आप इन्हे पहचान ना पाए हो। लेकिन ये वाली तस्वीर देखकर ज़रूर पहचान गए होंगे। जी हाँ ये हैं रामायण के मेघनाद विजय अरोरा। विजय अरोरा ने जब अपनी शानदार छवि और जानदार अभिनय से बॉलीवुड में एंट्री की तो उस दौर के स्थाफित सुपरस्टारों का सिंघासन डगमगाने लगा। 70 के दशक में विजय अरोरा ने बैक टू बैक कई हिट फ़िल्में दी।आप खुद गूगल पर जाकर इनके शुरूआती फिल्मों की ी MDB रेटिंग चेक कर सकते हैं। बहुत कम समय में ही विजय अरोरा उस बुलंदी को छूने लगे जहाँ तक पहुँचने के लिए बहुतों को लम्बा संघर्ष करना पड़ता है।
राजेश खन्ना खुद ये कहने लगे की विजय अरोरा ही मेरी जगह लेंगे।लेकिन 70 के दशक का अंत होते -होते विजय अरोरा को अचानक फ़िल्में मिलना बंद हो गयी , मज़बूरन इन्होने कुछ युगल फ़िल्में भी की लेकिन बाद में वो भी हाथ से जाती रही।अगर इसके पीछे की वजह पता की जाये तो कोई खाश वजह नहीं मिलेगी क्यूंकि इनकी सभी फ़िल्में अच्छी -खाशी पसंद की जा रही थी।
आखिर विजय अरोरा को ये पता चल ही गया की ये मायानगरी की ओछी राजनीति है जो इन्हे शायद कभी आगे नहीं बढ़ने देगी क्यूंकि फ़िल्मी दुनिया में न तो कोई इनका सगा रिश्तेदार था और न ही कोई गॉड फादर।विजय अरोरा के करियर में एक समय ऐसा आया जब इस टैलेंटेड और खूबसूरत अभिनेता को फिल्मों में छोटी -छोटी चरित्र भूमिकाएं ऑफर होने लगी।रोज़ी -रोटी चलाने के लिए विजय अरोरा को चरित्र भूमिकाओं में ही संतोष करना पड़ा।
इस तरह से एक ऐसा कलाकर जिसे आगे चलकर सुपरस्टार का दर्जा मिलना था मायानगरी की माया ने उसे एक B ग्रेड फिल्मों का चरित्र अभिनेता बनाकर छोड़ा। बाद में इन्होने विक्रम -बेताल और रामायण जैसे धारावहिकों में काम किया ।2 फरवरी 2007 को ये अभिनेता दिल में वही टीस लिए दुनिया को अलविदा कह गया ।
हमारे इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर है ।
2– प्रेमेन्द्र पराशर।
ये नाम शायद आपको अनसुना लगे लेकिन अगर मैं दीदार और होली आयी जैसी फिल्मों का ज़िक्र करूँगा तो आप शायद समझ जाएँ।जी हाँ ये उन्ही फिल्मों के हीरो हैं प्रेमेन्द्र पराशर जो उस दौर में परमेन्दर नाम से बॉलीवुड में काम करते थे। 1970 में जब प्रेमेन्द्र जी होली आयी रे फिल्म से बॉलीवुड में डेब्यू किया तो निर्माता निर्देशक इन्हे मनोज कुमार कहा करते थे।आपको बता दें की प्रेमेन्द्र जी अपने हैंडसम लुक और कद काठी से मनोज कुमार को भी मात देते थे।इसलिए जब ये पहली बार मनोज कुमार जी से मिले , तो मनोज कुमार जी मज़ाक -मज़ाक में बोले यार तू मेरी दुकान बंद कराने आ गया।आपको बता दूँ की प्रेमेन्द्र जी उत्तर प्रदेश के फतेहपुर सीकरी के रहने वाले हैं अभी पिछले साल ही मैंने इनका इंटरव्यू किया था।प्रेमेन्द्र जी के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ दो -चार फ़िल्में की जिन्होंने बॉक्स ऑफिस पर ठीक -ठाक कमाई की उसके बाद ये वापस फतेहपुर सीकरी लौट आये।वजह क्या थी ये आप समझ ही गए होंगे ।
तीसरे नंबर पर हैं गायिका ।
3-सुमन कल्याणपुर ।
जिन्हे फिल्मों में पार्श्वगायन में अधिक मौका इसलिए नहीं मिल पाया क्यूंकि इनकी आवाज उस दौर की सुप्रसिद्ध अभिनेत्री लता मंगेशकर से मिलती थी।और जो कुछ गाने इन्होने गाये भी उन्हें अधिकतर लोग लता जी के गाने समझते हैं।आप को विश्वाश न हो तो यू ट्यूब पर सर्च करें सुमन कल्याण पौर सांग्स।यकीनन आपको कुछ ऐसे गाने सुनने को मिलेंगे जिसे अभी तक आप लोग लता जी के गाने समझते रहे हैं ।इनके करियर की गाड़ी ज्यादा आगे क्यों नहीं बढ़ी आप सब के लिए इशारा ही काफी हैं।।
चौथे नंबर पर हैं गायक
4– शैलेन्द्र सिंह।
हो सकता है आप में से बहुतों ने इनका नाम न सुना हो लेकिन इनके गाने आज भी जब कहीं बजते हैं तो शमा बंध जाता है , और लोगों के मन में एक बार ये ज़रूर आता है की इस गाने का सिंगर कौन हैं। याद कीजिये बॉबी फिल्म के मैं शायर तो नहीं, हम तुम एक कमरे में बंद हो जैसे गाने ,जिसने ऋषि कपूर की बॉलीवुड में एंट्री करवाई। जी हाँ इसके पीछे वो रूमानी आवाज शैलेन्द्र सिंह की है। जिनकी एंट्री बॉलीवुड में ऋषि कपूर के साथ ही हुई थी और एक ज़माने में इन्हे ऋषि कपूर की आवाज भी कहा जाता था ।शैलेन्द्र सिंह 70 के दशक में उभरते हुए सबसे युवा गायक थे।
इनकी शानदार आवाज का जादू कुछ ऐसा चला की उस दौर के हर म्यूजिक डायरेक्टर इनसे अपनी फिल्म में गवाना चाहते थे। शैलेन्द्र सिंह ने उस दौर के सभी नामचीन संगीतकारों और गायकों के साथ काम किया। रफ़ी साहब के साथ गाया हुआ इनका गाना आज भी खूब प्रसिद्ध है। ए यार सुन यारी तेरी मुझे ज़िंदगी से भी प्यारी है। सुहाग फिल्म में ये गाना शशि कपूर और अमिताभ बच्चन पर फिल्माया गया है। या फिर अमर कबर अन्थोनी का गाना होनी का अनहोनी कर दे , अनहोनी को होनी।
शैलेन्द्र सिंह एक से बढ़कर एक हिट गाने दिए।शैलेन्द्र सिंह के साथ सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ जिसने शैलेन्द्र सिंह का करियर पूरी तरह तबाह कर दिया।अपने बढ़े हुए शुगर की वजह से शैलन्द्र सिंह हॉस्पिटल में भर्ती हुए।एक सप्ताह बाद जब वो भले चंगे होकर वापस लौटे तो उनके बारे में ये अफवाह फैला दी गयी की शैलेन्द्र सिंह की ओपन हार्ट सर्जरी हुई है।इसके बाद तो शैलेन्द्र सिंह को काम मिलना लगभग बंद हो गया।
फिल्म इंडस्ट्री के साथ -साथ श्रोता भी इन्हे कुछ इस तरह भूले की अभी चंद दिनों पहले ऋषि कपूर की मौत हुई मीडिया वालों न बहुत कुछ दिखाया लेकिन शैलेन्द्र सिंह को नहीं।वो शैलेन्द्र सिंह जिनकी गायकी की बदौलत ऋषि कपूर कपूर का करियर खड़ा हुआ उनके पास जाना किसी ने मुनासिब नहीं समझा ।
वो आज गुमनामी में जी रहे हैं।मायानगरी तो है ही बेगानी लेकिन ये हम दर्शकों की भी उदासीनता है जो एक नया सुशांत सिंह राजपूत पैदा करती है।हम अच्छे टैलेंट की कद्र नहीं रख पाते। मैं इसका भुग्त-भोगी स्वयं हूँ। मैं अपनी वीडियो में कितनी भी सच्चाई क्यों न दिखा लूँ , कितनी भी मेहनत क्यों न कर लूँ लेकिन मैं उन लोगों से हमेशा पीछे रहता हूँ जो लोग पीली पत्रकारिता करते हैं ।
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पांचवे नंबर पर हैं।
5-गायिका हेमलता।
नदिया के पार से लेकर कालजयी धारावाहिक रामायण तक ।हेमलता जी ने अपनी आवाज में एक से बढ़कर एक बेहतरीन नग्में दिए हैं। अँखियों के झरोखों से , हेमलता जी का ये गाना आज भी जब बजता है तो हम एक अलग ही दुनिया में चले जाते हैं।
70 के दशक में जब हेमलता जी की एंट्री बॉलीवुड में हुई तो उस दौर के स्थापित मठाधीशों को ये लगने लगा की कहीं हेमलता उनसे आगे न निकल जाये।इस वजह से उन्हें बहुत दबाने की कोशिश की गयी।मैं ये बात अपनी तरफ से नहीं बना रहा ।
हेमलता जी ने राज्यसभा टीवी को दिए गए इंटरव्यू में स्वयं ये बात स्वीकार्य की है। आप खुद इनका करियर एनलाइसिस कर सकते हैं।पार्श्वगायन के ज्यादातर मौके राजश्री प्रोडक्शन में मिले।संगीतकार रविंद्र जैन साहब न होते तो शायद हेमलता जी के करियर के बेहतरीन गाने उन्हें ना मिलते ।
इस तरह खंगालने बैठें तो ना जाने कितने कलाकार मिल जायेंगे जिनका करियर असमय खत्म किया गया। एक बात मैं आप लोगों से और कहना चाहूंगा ये ज़रूरी नहीं की एक अच्छे कलाकार के साथ -साथ कोई अच्छा इंसान भी हो।
हम मायानगरी के खूबसूरत पहलु से वाकिफ हैं घिनौने पहलुओं से नहीं। एक अच्छे कलाकार में एक अच्छा इंसान ऐसे उदाहरण फिल्म इंडस्ट्री में आपको बहुत कम मिलेंगे।बात चली ही है तो उम्मीद करते हैं आगे कुछ अच्छा होगा। किसी प्रोडक्शन हाउस ,निर्माता -निर्देशक पर आरोप लगाने से पहले हमें अपना आकलन भी करना होगा की हम नयी प्रतिभाओं का कितना सम्मान करते हैं।
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