लॉक डाउन के दौरान दूरदर्शन (Doordarshan) पर जब रामायण का प्रसारण हो रहा था तो किसी ने ये सोचा भी नहीं था की तैंतीस साल पहले बनी रामायण ऐसा रिकॉर्ड कायम करेगी जिसके आस -पास पहुंचना किसी अन्य टेलीविशन सीरीज के लिए नामुमकिन होगा . वेब सीरीज देखने और पब जी खेलने की शौक़ीन हमारी आज की मौजूदा युवा पीढ़ी का रामायण के प्रति लगाव होना बहुत ही सुखद अनुभूति कराता है .
हालाँकि इसके बाद भी कई रामायण बनी परन्तु जो लोकप्रियता रामानंद सागर (Ramanand Sagar Ramayan ) जी के रामायण को मिली वो और किसी को नहीं मिल पायी . इस बात पर गहनता से विचार करें तो बहुत से तथ्य निकलकर सामने आते हैं. जैसे रामायण का गीत -संगीत ,भावनात्मकता , सागर साहब का अद्भुत निर्देशन और सबसे बड़ी बात सभी कलाकारों का अपने किरदारों में एकदम जीवंत लगना .
देखते हुए ये महसूस ही नहीं होता की हम कोई धारावहिक देख रहे हैं .ऐसा लगता है की मानो हम उसी युग में जी रहे हो . तो आइये आपको रामयण के एक ऐसे ही कलाकार से आप सब को रूबरू करवाते हैं जिनके बारे में आप सभी दर्शक काफी दिनों से जानने को इच्छुक थे . विश्वामित्र (Ramanand Sagar Ramayan Vishwamitra) रामायणकाल का एक ऐसा पात्र जिसने असंभव को भी संभव करके दिखा दिया।
जो अपनी लगन मेहनत और तपस्या के बल पर राजा से महृषि बने। जिन्होंने स्वर्ग में जगह न मिलने पर राजा त्रिशंकु के लिए आकाश में एक अलग ही स्वर्ग का निर्माण कर दिया।जिन्होंने राजा हरिश्चंद्र की परीक्षा लेकर उन्हें इतिहास में अमर कर दिया ..
इन्हीं विश्वामित्र ने राम और लक्ष्मण के व्यक्तित्व को सुदृढ़ बनाने में महती भूमिका निभाई। इसलिए जब रामानंद सागर जी ने अपने सबसे बड़े प्रोजेक्ट रामायण पर काम किया तो उनके लिए विश्वामित्र को नकारना संभव नहीं था और उन्हें अपना विश्वामित्र मिला गुजराती सिनेमा के अभिनेता ‘ श्रीकांत सोनी ‘ जी के रूप में।
श्रीकांत सोनी रामानंद सागर रामायण के विश्वामित्र –
श्रीकांत जी के चेहरे का तेज उनका कठोर लेकिन खरा स्वर इतिहास में वर्णित विश्वामित्र के चरित्र से बिल्कुल मेल खाता था। उन्होंने विश्वामित्र के किरदार को ऐसे जिया जैसे वे सच में विश्वामित्र ही हों। तो आइये जानते हैं श्रीकांत सोनी जी के निजी जीवन और उनके फ़िल्मी करियर की कुछ दिलचस्प बातें .
प्रारंभिक जीवन-
श्रीकांत सोनी का जन्म सन 1944 में गुजरात में अमरेली जिले के लाठी गांव में हुआ था .अपने माता -पिता की चार संतानों में श्रीकांत जी सबसे बड़े थे .पिता जी स्वर्णकार थे जो की इनका पुस्तैनी कार्य था . इनकी शुरूआती पढ़ाई इनके गांव के ही एक स्कूल से पूरी हुई .परन्तु श्रीकांत जी जब 12 साल के हुए तो परिवार की ख़राब आर्थिक स्थिति के चलते इन्हे अपनी पढाई बीच में ही छोड़ देनी पड़ी .
सातवीं तक की पढाई पूरी करने के बाद श्रीकांत जी अपने पिता जी के साथ रोजी – रोटी की तलाश में मुंबई चले आये . मुंबई आने के बाद इन्होने अपने पिता जी सोने के कारोबार में हाथ बटाना शुरू कर दिया . उसी दौरान ये भांगवाड़ी नाटक समाज में नाटक देखने जाया करते थे और अभिनय का शौक वहीँ से हुआ और ये खुद भी उन नाटकों में हिस्सा लेने लगे .
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ऐसे पहुंचे गुजराती सिनेमा में –
भारत सरकार ने जब गोल्ड कण्ट्रोल एक्ट लाया तो इनका कारोबार भी एकदम से ठप्प पड़ गया. इसके बाद वो नाटक ही इनकी आजीविका का साधन बने . ये वही दौर था जब गुजराती सिनेमा विकसित हो रहा था . थिएटर की दुनिये में जब नाम हुआ तो श्रीकांत जी को गुजराती फिल्मों के भी ऑफर आने लगे . इनके करियर की सबसे पहली गुजराती फिल्म थी कंकु जो की 1969 में रिलीज़ हुई थी .
उसके बाद धरती न छोरु जैसी फिल्मों में श्रीकांत जी छोटी मोटी भूमिकाएं करते रहे . 1963 में इन्हे फिल्म मिली रामदेव पीर जिसमें इनका लीड रोले था .फिल्म की सफलता ने इन्हे गुजरती सिनेमा का एक नामी अभिनेता बना दिया . इसके बाद करीब 18 सालों तक मुख्य भूमिका में इन्होने गुजरती सिनेमा के लिया करीब 150 फ़िल्में की .
बाद में जब गोल्ड कण्ट्रोल हटा तो श्रीकांत जी वापस अपने पुस्तैनी कारोबार में लग गए .बात उस समय की है जब गुजराती सिनेमा अपने शीर्षता को खो रही थी . श्रीकांत जी अपने पुस्तैनी कार्य में तो लगे रहे लेकिन इनका मन अभिनय से हट नहीं पाया था.
कैसे मिला विश्वामित्र का किरदार ?-
अब आते हैं उस किस्से पर जब रामायण में इन्हे विश्वामित्र के किरदार मिला .इसके पीछे का किसा बड़ा ही दिलचस्प है .श्रीकांत जी को जब पता चला की रामानन्द सागर रामायण बना रहे हैं तो ये केवट के किरदार के लिए ऑडिशन देने सागर साहब के ऑफिस पहुंचे . परन्तु सागर साहब ने इन्हे केवट का किरदार देने से इंकार कर दिया .श्रीकांत जी निराश होकर वापस चले आये .
तीन दिन बाद सागर साहब के ऑफिस से फ़ोन आया और बोला गया “आप को पापा जी ने याद किया है आप जल्दी से ऑफिस चले आइये” .इस पर श्रीकांत जी ने कहा लेकिन मुझे तो रिजेक्ट कर दिया गया है . जवाब मिला पापा जी ने आप लिए कोई दूसरा रोल सोच कर रखा है आप बस चले आइये . श्रीकांत जी एक बार फिर सागर साहब के ऑफिस पहुंचे .
वहां पहुँचने के बाद श्रीकांत जी को विश्वामित्र के गेटअप में तैयार किया गया .श्रीकांत जी अब तक नहीं समझ पाए थे की उन्हें ये कौन सा किरदार दिया जा रहा है . आखिर इन्होने पूँछ ही लिया आखिर मुझे साधु का गेटअप क्यों दिया जा रहा है . इस पर रामानंद सागर जी ने जवाब दिया आपको विश्वमित्र जी का किरदार दिया जा रहा है .
इस पर श्रीकांत जी बोले लेकिन इसके लिए तो संस्कृत निष्ठ हिंदी का ज्ञान होना चाहिए जो मुझे नहीं आता मैं इस किरदार के साथ न्याय नहीं कर पाउँगा . रामानंद सागर जी बोले आप इसकी चिंता न करें मैं आप से ये करवा लूंगा . श्रीकांत जी ने फिर पूंछा लेकिन ये किरदार मुझे ही क्यों . इस पर रामानंद सागर जी का उत्तर था – चूँकि विश्वमित्र साधु बनने से पहले एक राजा थे इसलिए मुझे एक ऐसे किरदार की तलाश थी
जिसके साधु जैसे मुख पर एक राजा का तेज हो जो मुझे तुम्हारे चेहरे पर साफ़ झलक रहा है . इस तरह श्रीकांत जी को विश्वामित्र का किरदार मिला . शूटिंग के वक्त संवाद बोलने में इन्हे दिक्कत होती थी इसलिए कैमरे के पीछे से एक स्लाइड पर इन्हे वो संवाद दिखाया जाता था .
रामायण के बाद अन्य कार्य –
रामायण के बाद ये कई अन्य गुजराती फिल्मों और धारावहिकों में ये चरित्र भूमिकाएं करते रहे .2010 में ये स्टार प्लस के टीवी सीरियल हमारी देवरानी में भी ये नज़र आये थे।
निजी जीवन –
बात करें इनके निजी जीवन की तो श्रीकांत जी की शादी 1972 में हुई थी इस शादी से इनकी चार संताने हुईं . आपको बता दें ये पूरी इनफार्मेशन हमें श्रीकांत जी के सबसे छोटे बेटे दीलिप सोनी ( Shrikant Soni Son Dilip Soni Gujarati Actor) जी से मिली है . दिलीप जी भी गुजराती सिनेमा के अभिनेता हैं .
मृत्यु –
(Srikant Soni Death) 28 अक्टूबर 2016 को श्रीकांत जी इस दुनिया को अलविदा कह गए . गुजराती सिनेमा में श्रीकांत जी के अभूतपूर्व योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता . अपने विश्वामित्र के किरदार के लिए श्रीकंत जी हमेशा याद किया जायँगे . नारद टीवी की तरफ से इस महान अभिनेता को शत – शत नमन .