अपनी पहली ही फिल्म से ऐक्टिंग का लोहा मनवाने वाले कितने ही ऐक्टर्स का समय-समय पर बॉलीवुड में आगमन होता रहा है। एक ऐक्टर के लिये पहली ही फिल्म से अपनी एक मजबूत पहचान बना लेना कोई आसान काम नहीं होता है ख़ासतौर पे तब, जब उसके सामने ऐसे ऐक्टर्स हों जिनके साथ सीन करने में अच्छे अच्छों के पसीने छूट जाते हों।
90 के दशक में बड़े परदे पर एक ऐसे ही दमदार ऐक्टर की एंट्री हुई जिसने ढेरों दिग्गज़ ऐक्टर्स की मौजूदगी के बावज़ूद, न सिर्फ बतौर विलेन अपनी एक छाप छोड़ी बल्कि दर्शकों के दिलों में एक ख़ौफ़ पैदा करने में भी कामयाबी हासिल की, और उस ऐक्टर का नाम है मुकेश तिवारी। अपनी पहली ही फिल्म ‘चाइनागेट’ में निभाये अपने क़िरदार डाकू जगीरा को मुकेश तिवारी ने कुछ इस तरह जीवंत किया
कि उस क़िरदार के साथ-साथ औसत रूप से सफल होने के बावज़ूद यह फिल्म भी यादगार बन गयी। बेहद ही टैलेंटेड मुकेश तिवारी जी के फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत और उनके जीवन से जुड़े किस्से भी बेहद दिलचस्प हैं जो कहीं न कहीं हम सबको एक प्रेरणा देने का भी काम करते हैं।
थियेटर और बॉलीवुड के जाने-माने ऐक्टर मुकेश तिवारी का जीवन काफी उतार चढ़ाव भरा रहा । हालांकि मुकेश अपने संघर्ष को एक यात्रा मानते हैं जो अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिये उन्होंने तय किया है, वे कहते हैं कि संघर्ष अगर किया भी है तो उनके परिवार ने किया है। मुकेश मध्यप्रदेश के शहर ‘सागर’ के एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते हैं,
जिसका ऐक्टिंग और फिल्मों से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था। पढ़ाई-लिखाई और कोई बड़ी नौकरी जैसे आम ख़्वाब देखने वाले एक साधारण से परिवार में 24 अगस्त 1969 को जन्मे मुकेश आगे चलकर ऐक्टिंग के फील्ड में इतना बड़ा नाम कमायेंगे ये किसी ने नहीं सोचा था। मुकेश सागर के ही ‘डॉ. हरि सिंह गौड़ विश्वविद्यालय’ से स्नातक हैं।
दोस्तों मुकेश अपनी स्टूडेंट लाइफ में एक बेहतरीन क्रिकेटर हुआ करते थे, वे अंडर-12, अंडर-15 के साथ-साथ अंडर-19 क्रिकेट भी खेल चुके हैं। मुकेश की पढ़ाई के दौरान ही उनके पिता का निधन हो गया । ऐसे में बतौर गार्जियन उनकी माँ ने ही उनका ख़याल रखा और उनके सपने को साकार करने में उनका सहारा बनीं। हालांकि मुकेश तब तक बड़े हो चुके थे, और ख़ुद को संभालना सीख चुके थे।
दोस्तों मुकेश जब कॉलेज में थे तब उन्हें नाटक देखने का भी शौक़ हो गया था और नाटक देखने के दौरान ही उन्होंने फैसला कर लिया था कि वे भी एक ऐक्टर ही बनेंगे। मुकेश अपने शहर के ही एक ऑर्केस्ट्रा ग्रुप से जुड़कर छोटे-छोटे शोज़ करने लगे। अपने शुरुआती शोज़ के बारे में बताते हुए मुकेश कहते हैं कि अपने एक नाटक शो को दिखाने के लिए बड़े ही मन से उन्होंने अपने पूरे परिवार को भी बुलाया,
लेकिन मुकेश तब बड़े शर्मिंदा हुये जब उस शो को देखने महज़ 18 लोग आये जिनमें से लगभग आधे उनके परिवार और आस पड़ोस से ही थे। मुकेश उस रोज़ बड़े ही शर्म से देर रात अपने घर पहुँचे जहाँ उनकी माँ उनका इंतज़ार कर रहीं थीं। उन्होंने मुकेश से कहा कि “तुमने अच्छा काम किया, लेकिन तुम्हें अगर ऐक्टर ही बनना है तो अच्छे से इसकी ट्रेनिंग ले लो तभी इस फील्ड में जाना।”
दोस्तों मुकेश बताते हैं कि उनकी माँ बहुत ही कम पढ़ी लिखी थीं लेकिन अख़बार के ज़रिये देश दुनियाँ की पूरी जानकारी रखती थीं। मुकेश ने माँ की इस बात को गांठ बांध लिया और जैसे ही उन्हें पता चला कि दिल्ली में एनएसडी नाम का एक ऐसा स्कूल है जहाँ ऐक्टिंग सिखाई जाती है तो वे वहाँ पहुँच गये और उसके ऐडमिशन का फॉर्म भर दिया।
फाॅर्म भी सेलेक्ट हो गया और अगले राउंड को भी उन्होंने क्लीयर कर लिया लेकिन अंतिम राउंड में उन्हें रिजेक्ट कर दिया। मुकेश दिल्ली से वापस सागर की ट्रेन में बैठकर सोचने लगे कि उन्होंने ऐसी क्या ग़लती की थी जिसकी वज़ह से उन्हें रिजेक्ट कर दिया गया। मुकेश को यह रियलाइज़ हुआ कि जिस आदमी को ‘इम्प्रोवाइजेशन’ का मतलब नहीं पता उसको रिजेक्ट होना ही चाहिए था।
उन्होंने अपनी कमी को स्वीकार किया और अगले दिन सागर पहुँचते ही लाइब्रेरी जा पहुँचे और नाटकों से जुड़ी किताबों को पढ़ना शुरू कर दिया। एक सत्र तक जमकर तैयारी करने के बाद उन्होंने एनएसडी में ऐडमिशन के लिये दोबारा फॉर्म भर दिया। इस बार अंतिम राउंड में उन्होंने हर सवाल का ऐसा जवाब दिया कि वहाँ मौजूद टीचर्स ने कहा कि जब तुम्हें नाटकों की इतनी जानकारी है तो यहाँ आने की क्या ज़रूरत है?
बहरहाल एनएसडी यानि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, से उन्होंने पढ़ाई पूरी की और एनएसडी की ही संस्था से जुड़कर मुकेश नाटकों में काम करने लगे और धीरे-धीरे बतौर ऐक्टर मशहूर हो गये। हालांकि तब मुकेश ने ये कभी महसूस नहीं किया था कि वे कितने नामी ऐक्टर हो चुके हैं। यहाँ तक कि जब चाइनागेट के लिये उन्हें बुलाया गया तो उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ। उन्हें लगा कि कोई उनके साथ मस्ती कर रहा है।
5 दिनों बाद फिर से किसी ने उन्हें बताया कि नसीरुद्दीन शाह तुमसे बात करना चाहते हैं। मुकेश को एनएसडी के दौरान नसीरुद्दीन शाह ने भी ट्रेनिंग दी थी, इसलिए मुकेश भागे-भागे पोसीओ पहुँचे और नसीरुद्दीन शाह को फोन लगाया तो नसीरुद्दीन शाह मुकेश पर ख़ूब चिल्लाये और कहा “5 दिन से मैं तुम्हारे फोटोज़ का वेट कर रहा हूँ लेकिन तुम्हारा कुछ पता ही नहीं है।
” फिर उन्होंने चाइनागेट फिल्म के बारे में बताया। मुकेश ने फौरन अपनी तस्वीरें कूरियर कर दी और कुछ दिनों के बाद अचानक फोन आया कि अगले दिन ही उन्हें मुंबई पहुँचना है। अब मुकेश के सामने एक अलग समस्या खड़ी हो गयी थी और वो थी पैसों की समस्या, क्योंकि इतनी जल्दी दिल्ली से मुंबई सिर्फ़ फ्लाइट से पहुँचा जा सकता था जिसमें 4500 का खर्चा था।
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ऐसे में उनकी मदद की, एनएसडी में ही चौकीदार का काम करने वाले उनके दोस्त सतवीर ने। उन्होंने फौरन बैंक जाकर 5000 रुपये निकाले और मुकेश के हाथों में रख दिया।
मुकेश ने कहा कि लेकिन मैं ये पैसे कैसे लौटाउंगा क्योंकि मेरी पेमेंट तो बस 3500 ही है। तब सतवीर ने कहा कि “कोई बात नहीं आधा-आधा करके अपने पेमेंट में से लौटा देना।”
ख़ैर अगले दिन मुकेश मुंबई पहुँच गये और अपना ऑडिशन दिया। दोस्तों मुकेश को अपने ऑडिशन को लेकर इस बात का डर था कि उनके द्वारा बोला गया संवाद जो कि हिंदी के क्लिष्ट शब्दों में था पता नहीं ऑडिशन में किसी को समझ में आयेगा भी या नहीं। लेकिन उनकी ऐक्टिंग और संवाद अदायगी पर जमकर तालियाँ बजी और मुकेश को 20,000 साइनिंग अमाउंट के साथ डाकू जगीरा के रोल के साइन कर लिया गया।
इस रोल के लिये सेलेक्ट हो जाने के बाद मुकेश ने फिल्म के डायरेक्टर राजकुमार संतोषी से इसकी तैयारी के लिये थोड़ा वक़्त माँगा। मुकेश बताते हैं कि उस वक़्त उन्होंने अपना वजन बढ़ाने के साथ-साथ ख़ुद से नफ़रत करवाने के लिये कई महीनों न बाल कटवाये न दाढ़ी बनायी यहाँ तक कई दिनों तक वे नहाये तक नहीं, ताकि वे उस रोल को जीवंत कर सकें।
वर्ष 1998 में रिलीज़ हुई इस फिल्म से लोगों के दिलों में दहशत मचाने वाले मुकेश को अपने इस रोल के कई अवाॅर्ड्स मिले। हालांकि मुकेश बताते हैं कि फिल्म फेयर के अवाॅर्ड के लिये जिससे उन्हें बहुत उम्मीद थी और उसके लिये उन्होंने नया सूट भी सिलवाया था लेकिन वो अवाॅर्ड उन्हें नहीं मिला।
दरअसल उस साल मुकाबला भी बहुत काँटे का था और बेस्ट विलेन का यह अवॉर्ड उन्हीं के बैच के एनएसडी के उनके साथी आशुतोष राणा के हिस्से में फिल्म दुश्मन के लिये मिल गया। दोस्तों आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि चाइनागेट में इतनी तारीफ़ पाने के बाद भी मुकेश को कई महीनों तक कोई काम नहीं मिला।
इस बात से वे बड़े हैरान थे कि इतने पॉपुलर होने के बाद भी उनके साथ ऐसा क्यों हो रहा है तब एक दिन उन्हें यह रियलाइज़ हुआ कि दरअसल लोग उन्हें तो पहचानते ही नहीं है वे तो उनके जगीरा के क़िरदार को पहचानते हैं जिसका लुक ओरिजिनल में उनसे बहुत ही अलग है। मुकेश ने फौरन 20 डायरेक्टर्स की लिस्ट बनायी और सबसे मिलना शुरू कर दिया।
2 महीने के भीतर ही मुकेश के हाथों अब कुल 18 फिल्में थी। बस इसके बाद मुकेश की गाड़ी चल निकली। बतौर विलेन उन्होंने ढेरों फिल्मों में काम किया और लगभग 4 सालों तक काम करने के बाद उन्हें लगने लगा कि अब उन्हें कुछ अलग करना चाहिए क्योंकि विलेन के एक जैसे रोल करते रहने से उनके भीतर के कलाकार को संतुष्टि नहीं मिल पा रही थी और साथ ही बदलते दौर में धीरे-धीरे विलेन के अच्छे क़िरदार बनने भी बंद होने लगे थे।
इसी बीच मुकेश के हाथ आयी एक ऐसी फिल्म जो उनके करियर के लिये मील का पत्थर साबित हुई। यह फिल्म थी 2003 में रिलीज़ हुई निर्माता निर्देशक प्रकाश झा की सुपरहिट फिल्म ‘गंगाजल’। इस फिल्म में उनके द्वारा निभाये गये क़िरदार ‘बच्चा यादव’ को इतना पसंद किया गया कि इसके बाद मुकेश को हर तरह के क़िरदार मिलने लगे।
इस फिल्म के दौरान मुकेश और अजय देवगन की दोस्ती हो गयी, जिसके बाद अजय ने मुकेश को डायरेक्टर रोहित शेट्टी से मिलवाया। रोहित शेट्टी को मुकेश का काम इतना पसंद आया कि उन्होंने गोलमाल सहित अपनी आगामी लगभग हर फिल्म में उन्हें शानदार रोल दिये। फ़िल्म गोलमाल में मुकेश ने अपने द्वारा निभाये ‘वसूलीभाई’ के क़िरदार से सबको चौका दिया
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क्योंकि यह क़िरदार बेहद ही फ़नी था जो उनकी इमेज से एकदम अलग था। मुकेश कहते हैं कि वे लकी हैं जो उन्हें पॉजिटिव-नेगेटिव और कॉमेडी हर तरह के रोल्स मिलने लगे हैं। दोस्तों ऐक्टर मुकेश तिवारी की फिल्मों की लिस्ट काफी लम्बी है। उन्होंने हिंदी के अलावा तमिल, तेलुगु और पंजाबी भाषाओं में कुल 200 के लगभग फिल्मों में काम किया है जो अभी भी ज़ारी है।
मुकेश पापुलर सीरियल ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में भी नज़र आ चुके हैं, जिसे दर्शकों ने इतना पसंद किया था कि उन्हें ‘कॉमेडी नाइट्स विद कपिल’ में काम करने का भी ऑफर मिला। हालांकि उन्होंने यब कहकर ठुकरा दिया कि “ऐक ऐक्टर होने के नाते मैं हर तरह के रोल्स करता हूँ जिसमें कॉमेडी भी शामिल है, लेकिन मैं कोई कॉमेडियन नहीं हूं।”
आइये अब एक नज़र डाल लेते हैं मुकेश तिवारी जी के निजी जीवन पर। मुकेश की पत्नी का नाम है ‘वायलेट नज़ीर तिवारी’, जिनसे उन्होंने प्रेम विवाह किया है। नज़ीर एक थियेटर आर्टिस्ट हैं, मुकेश और नज़ीर की मुलाक़ात दिल्ली में एनएसडी के दौरान ही हुई थी, जब दोनों वहाँ अपनी पढ़ाई कर रहे थे। एक इंटरव्यू में मुकेश ने बताया था कि नज़ीर को देखते ही वे उन्हें अपना दिल दे बैठे थे।
हालांकि वे पहले तो कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाए लेकिन एक दिन अपनी मोहब्बत का इज़हार कर ही दिया। बस बात बनी गई और फिर वर्ष 1995 में घरवालों की रज़ामंदी से उनका विवाह भी हो गया। दोस्तों मुकेश तिवारी एक उम्दा ऐक्टर होने के साथ-साथ एक बेहतरीन इंसान भी हैं।
वर्ष 2020 में लॉकडाउन से 2 महीने पहले उन्होंने एक मलयालम फिल्म साइन की थी जिसकी शूटिंग साउथ में होने वाली थी, लेकिन तब तक लॉकडाउन लग चुका था और उन्हें यह पता चला कि वहां जाने के बाद 14 दिन क्वारैंटाइन रहना पड़ेगा, जबकि उसके निर्माता को फिल्म जल्द ही शुरू करनी थी क्योंकि बारिश की वज़ह से उस फिल्म का सेट खराब हो रहा था।
तब मुकेश ने निर्माता से कहा कि आप किसी और को ले लीजिए, क्योंकि एक्टर से ज्यादा सिनेमा महत्वपूर्ण होता है। दोस्तों इस फिल्म के लिये मुकेश को अच्छा-खासा साइनिंग अमाउंट मिला था। मुकेश चाहते तो उस साइनिंग अमाउंट को वापस नहीं भी करते, लेकिन उन्होंने पूरा अमाउंट वापस कर दिया।