आज भारत की अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट टीम को अपना सफर शुरू करे हुए 89 साल हो गए हैं और इस लम्बे कालखंड में भारतीय टेस्ट टीम को लीड करने वाले खिलाड़ियों का नाम भी साथ साथ चलता रहा है।
साल 1926 में जब भारतीय खिलाड़ी सीके नायडू ने एमसीसी की टीम के खिलाफ खेलते हुए 153 रन बनाए तो विश्व क्रिकेट में भारत के टेस्ट पर्दापण की बातें होने लगी थी।
भारत का पहला कप्तान कौन ?
साल 1928 में बीसीसीआई का गठन हुआ और अब भारत को उसका पहला कप्तान देने की बात चलने लगी थी।
20 वीं सदी का शुरुआती समय भारत में क्रिकेट का वो दौर था जब यह खेल देश में अलग अलग राजाओं के रहमो करम पर निर्भर रहता था, बीसीसीआई के गठन के बाद उसको संभालने वाले लोगों में पटियाला के महाराजा मुख्य भूमिका निभा रहे थे।
टेस्ट क्रिकेट में भारत के पर्दापण की बातों में टीम का कप्तान किसी अंग्रेज को बनाने की बात पर भी विचार किया गया था ताकि अलग अलग धर्मों के लोगों में कोई झगड़ा ना हो और इसलिए भारत की पहली टेस्ट टीम का कप्तान डगलस जार्डिन को बनाने का विचार किया गया क्योंकि उनका जन्म भारत में ही हुआ था लेकिन फिर किन्हीं कारणों से ऐसा कुछ नहीं हो पाया था।
इसके बाद सीनीयर पटौदी का नाम भी सामने आया क्योंकि वो उस समय भारत में जन्मे बहुत अच्छे क्रिकेट खिलाड़ियों में से एक थे लेकिन सीनियर पटौदी उस समय इंग्लैंड के लिए क्रिकेट खेल रहे थे और इस वजह से सीनीयर पटौदी का नाम भी लिस्ट से हटा दिया गया था।
अब सुई भारत में स्थित ऐसे राजा महाराजाओं पर पहुंची जो देश में इस खेल को स्पोंसर कर रहे थे और इस लिस्ट में पटियाला के महाराजा और विजिनगरम के कर्ता धर्ता का नाम सबसे ऊपर था लेकिन साल 1932 में भारत का इंग्लैंड दौरा अप्रैल से अक्टूबर तक चलने वाला था और ये महाराजा अपने राज्यों को ज्यादा समय तक नहीं छोड़ना चाहते थे और इसलिए इन्होंने भी अपना नाम कप्तानी से वापस ले लिया था।
सीके नायडू-
अंत में 2 अप्रैल साल 1932 को जब बोम्बे से सात हिंदु पांच मुस्लिम, चार पारसी और दो सीख खिलाड़ियों के साथ टीम इंग्लैंड के लिए निकली तो कप्तानी का जिम्मा पोरबंदर के महाराजा को दिया गया था और इसका कारण उनका खेल नहीं उनके बोलने का लहजा था।
लेकिन ब्रिटेन पहुंचने के बाद जब प्रैक्टिस मैच शुरू हुए तो यह साफ हो गया कि कप्तानी पोरबंदर के महाराजा के बस की बात नहीं है और यह बात जब महाराजा को महसूस हुई तो उन्होंने भारत के पहले टेस्ट मैच से एक दिन पहले भारत की कप्तानी करने से मना कर दिया और सीके नायडू को नया कप्तान नियुक्त कर दिया था।
आखिरकार सब कुछ तय होने के बाद अगले दिन 25 जून साल 1932 को 37 साल के सीके नायडू डगलस जार्डिन के साथ टोस के लिए मैदान पर उतरे थे।
भारतीय टीम अपना पहला टेस्ट मैच हार गई और आगे भी नायडू की कप्तानी में भारत कोई भी मैच जीतने में सफल नहीं रही लेकिन नायडू ने भारतीय क्रिकेट को डिसीप्लीन और मैदान पर डटे रहने का गुण सीखा दिया था और यह बात नायडू की कप्तानी का कुल हासिल रहा था।
महाराज कुमार ओफ विजिनगरम-
भारत ने नायडू की कप्तानी में चार मैच खेले थे जिनमें से एक मैच ड्रा रहा था और तीन मैचों में भारत को हार मिली थी।
भारतीय टीम का पहला कप्तान भले ही एक आम आदमी था लेकिन खिलाड़ियों की पसंद अब भी यह थी कि वो किसी राजा महाराजा के अंडर ही खेले और इसीलिए जब साल 1936 में इंग्लैंड दौरे के लिए कप्तान चुनने के लिए चुनाव हुआ तो नायडू और महाराज कुमार ओफ विजिनगरम के बीच हुए मुकाबले में विजी ने जीत हासिल कर ली थी।
विजी का खेल मैदान पर नायडू जैसे खिलाड़ियों के मुकाबले बहुत खराब था लेकिन अब विजी भारत के कप्तान थे और उनकी कप्तानी का दौर भारत के अच्छे खेल की बजाय कुछ कोन्टर्वरसीज के लिए याद किया जाता है जिसमें lala अमरनाथ को साल 1936 के इंग्लैंड दौरे से बीच में भारत भेजने वाली घटना भी शामिल हैं।
सीनियर पटौदी-
भारत विजी की कप्तानी में खेले तीन मैचों में भी कोई जीत हासिल करने में असफल रहा था जिसके बाद इफ्तिखार अली खान पटौदी भारत के लिए खेलने के लिए उपलब्ध हो गये थे, हालांकि सीनियर पटौदी का नाम 1936 दौरे के लिए भी सामने आया था लेकिन तब पटौदी की तबियत खराब होने की वजह से वो कप्तान नहीं बन पाए थे।
साल 1946 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद क्रिकेट फिर से शुरू हुआ और पटौदी के रुप में भारत को अपना नया कप्तान मिला लेकिन मैदान पर रिजल्ट अब भी वैसे ही थे, पटौदी की कप्तानी में भारत ने तीन मैच खेले जिनमें से दो ड्रा रहे थे।
दुसरे विश्वयुद्ध के शुरु होने के कारण बहुत से खिलाड़ियों को मैदान पर उतरने के लिए बारह साल का इंतजार करना पड़ा था जिसमें भारत के पहले टेस्ट सेंचुरियन लाला अमरनाथ भी शामिल थे।
लाला अमरनाथ-
साल 1947 में भारत आजाद हुआ और लाला अमरनाथ को आजाद भारत का पहला कप्तान बनाया गया था, अब तक भारतीय टीम ने अपने सभी टेस्ट मैच इंग्लैंड के खिलाफ ही खेले थे लेकिन अमरनाथ वो पहले कप्तान बने जिनकी कप्तानी में भारत ने आस्ट्रेलिया का दौरा किया था, हालांकि वहां भारत को जीत नसीब नहीं हुई थी।
लाला अमरनाथ की जगह विजय मर्चेंट के बारे में कहा जाता है कि वो आजाद भारत के पहले टेस्ट कप्तान बनने के लिए पहली पसंद थे लेकिन लाला अमरनाथ को चुना गया और वो भारत के पहले ऐसे कप्तान बने जिनके नाम कोई जीत लिखी गई थी और यह जीत पाकिस्तान के खिलाफ आई थी।
पाकिस्तान के खिलाफ भारत की दो टेस्ट मैचों में जीत का आंकड़ा लेकर लाला अमरनाथ ने छः सालों तक भारत की कमान संभाली जिसके बाद विजय हजारे को भारतीय टेस्ट टीम का नया कप्तान चुना गया।
विजय हजारे-
विजय हजारे ने भारत को चौदह मैचों में लीड किया और इस दौर का सबसे खास पल साल 1952 में ही आया जब भारत ने हजारे की कप्तानी में इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट जीत हासिल की थी।
हजारे ने भारत को दो सालों तक लीड करने के बाद कप्तानी छोड़ दी जिसके बाद वीनू मांकड़ को भारत का अगला टेस्ट कप्तान बनाया गया जो देश के शायद पहले ऐसे कप्तान बने जिन्हें आगे चलकर बीच सीरीज में कप्तानी से हटा दिया गया था।
वीनू मांकड़-
वीनू मांकड़ की कप्तानी में भारत एक भी मैच में जीत हासिल नहीं कर पाया था और 1958-59 में वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट सीरीज में उन्हें कप्तानी से हाथ धोना पड़ा था।
गुलाम अहमद-
इस सीरीज में पोली उमरीगर ने पहले टेस्ट मैच में भारत को लीड किया था जिसके बाद गुलाम अहमद को दुसरे और तीसरे मैच में कप्तानी करने का मौका मिला था और चौथे मैच में फिर से मांकड़ को कप्तान के तौर पर लाया गया था लेकिन वो इस सीरीज के सिर्फ एक ही मैच में कप्तानी कर सके और उनके बाद हेमू अधिकारी ने अंतिम मैच में अपने देश को लीड किया था।
इस तरह एक सीरीज में भारत ने चार खिलाड़ियों के अंडर खेलने के बाद भी यह सीरीज तीन जीरो से गंवा दी थी। आगे भारतीय टेस्ट क्रिकेट इतिहास के सातवें प्रोपर कप्तान के रूप में गुलाम अहमद का नाम लिया जाता है लेकिन वो भी भारत को कोई भी मैच में जीत नहीं दिलवा पाये थे।
उमरीगर-
जिसके बाद बारी आई उमरीगर की जिन्होंने वेस्टइंडीज सीरीज में भारत की तरफ से सबसे ज्यादा 337 रन बनाए थे।
उमरीगर की कप्तानी में भारत ने आठ मैच खेले जिनमें से भारत को दो मैचों में जीत मिली थी। भारत का अगला कप्तान हेमू अधिकारी को बताया जाता है जिनका कप्तानी करियर वेस्टइंडीज सीरीज में एक मैच के बाद ही खत्म हो गया था और वो मैच ड्रा रहा था।
दत्ता गायकवाड़-
गुलाम अहमद, हेमू अधिकारी और वीनू मांकड़ का क्रिकेट करियर इस सीरीज के साथ खत्म हो गया था जिसके बाद दत्ता गायकवाड़ को इंग्लैंड सीरीज के लिए देश का अगला कप्तान नियुक्त किया गया था लेकिन वो इस सीरीज में भारत को एक भी जीत नहीं दिला पाए थे।
पंकज राय इस सीरीज में भारत के वाइस कप्तान के तौर पर खेल रहे थे जिन्हें सीरीज के दुसरे मैच में गायकवाड़ के इंजर्ड हो जाने के कारण अपने देश को लीड करने का मौका मिला था लेकिन रिजल्ट्स में कोई बदलाव नहीं आया था।
गुलाबराय रामचंद-
भारत के बारहवें कप्तान का नाम गुलाबराय रामचंद था आप में से बहुत से लोग इस नाम से परिचित नहीं होंगे लेकिन आपको बता दें कि इन्हीं की कप्तानी में भारत ने पहली बार माइटी आस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट मैच में जीत हासिल की थी।
तो इस तरह 50 का दशक भारतीय क्रिकेट के लिए बहुत ही अनोखा रहा भारत को बहुत से कप्तान मिले लेकिन उनका कप्तानी करियर बहुत छोटा था।
अब चलते हैं साठ के दशक की तरफ जिसमें नारी कोन्ट्रेक्टर के रुप में भारत को एक बहुत ही सधा हुआ शानदार खिलाड़ी कप्तान के तौर पर मिला।
साल 1960 में पाकिस्तान के खिलाफ कोन्ट्रेक्टर ने भारत की कमान संभाली और इस सीरीज का हर मैच ड्रा रहा था जिसके बाद कोन्ट्रेक्टर इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज जीतने वाले पहले भारतीय कप्तान बने थे।
मंसूर अली खान पटौदी-
कोन्ट्रेक्टर ने लगभग दो सालों तक क्रिकेट के मैदान पर भारत को लीड किया जिसके बाद वेस्टइंडीज के खिलाफ सीरीज में भारत को मंसूर अली खान पटौदी के रूप में नया कप्तान मिला जिसने टेस्ट क्रिकेट में इस देश को नई दिशा देने का काम किया था।
महज 21 साल की उम्र में भारत की कप्तानी का भार अपने कंधो पर उठाने वाले पटौदी वो पहले कप्तान थे जिन्होंने भारत को दुसरे देशों में भी लड़ना और जीतना सीखाया था।
साल 1961 में वेस्टइंडीज सीरीज के तीन मैचो से पटौदी के कप्तानी करियर का आगाज हुआ और इन्होंने न्यूजीलैंड के खिलाफ भारत को देश के बाहर पहली बार सीरीज जीताने का काम किया था।
पटौदी की कप्तानी में भारत ने 40 टेस्ट मैच खेले थे जिनमें से भारत को सिर्फ नौ मैचों में ही जीत हासिल हुई थी लेकिन वो कहते है ना कि कुछ खिलाड़ियों के आंकड़े उनकी प्रतिभा और मैदान पर उनकी अहमियत को बयान नहीं कर सकते हैं ठीक ऐसा ही कुछ पटौदी की कप्तानी के साथ भी है और यह बात वो खिलाड़ी भी मानते हैं जो इनके साथ और इनके खिलाफ खेल चुके हैं कि पटौदी की कप्तानी में बहुत कुछ नया और अलग था जो दुसरो में कम ही देखने को मिलता है।
पटौदी की कप्तानी के दौरान साल 1967- 68 में आस्ट्रेलिया के खिलाफ एक मैच में कप्तानी करने का मौका चन्दु बोर्डे को भी मिला था और इस तरह वो भारत के 15 वें कप्तान माने जाते हैं।
इसके बाद साल 1971 में अजीत वाडेकर को भारत का नया कप्तान बनाया गया और इन्होंने अपने देश को वेस्टइंडीज और इंग्लैंड में सीरीज जीताकर पटौदी की विरासत को आगे बढ़ाने का काम किया था, वाडेकर ने भारत को सौलह मैचों में लीड किया था और इनमें चार मैचों में भारत को जीत मिली थी और चार भारत हार गया था।
गुलाम अहमद भारत की कप्तानी करने वाले पहले स्पेशलिस्ट गेंदबाज थे और वो एक स्पिन गेंदबाज थे, वाडेकर के कप्तानी छोड़ने के बाद श्रीनिवासन वेंकेटराघवन भारतीय क्रिकेट की मशहूर स्पिन चौकड़ी में से भारत की कप्तानी करने वाले पहले खिलाड़ी बने और इन्होंने भारत को पांच मैचों में लीड किया था।
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सुनील गावस्कर-
भारतीय टेस्ट क्रिकेट इतिहास के अठारहवें कप्तान सुनील गावस्कर बने लेकिन पचास के दशक की ही तरह एक सीरीज में अलग अलग कप्तानों के साथ खेलने का सिलसिला यहां भी जारी रहा और बिशन सिंह बेदी भी सुनील गावस्कर के साथ साथ भारत के कप्तान बने रहे।
बिशन सिंह बेदी-
बेदी ने कप्तान के तौर पर गवास्कर की पहली सीरीज में न्यूजीलैंड के खिलाफ दो मैचों में भारत को लीड किया था और यह सिलसिला आगे भी जारी रहा था।
गवास्कर की कप्तानी में भारत ने 47 मैच खेले थे जिनमें से नौ मैचों में भारत को जीत मिली थी और तीस मैच ड्रा रहे थे।
बिशन सिंह बेदी और गुंडप्पा विश्वनाथ को भी गवास्कर के कप्तानी करियर के दौरान ही भारत को लीड करने का मौका मिल गया था जिनमें से बेदी ने छः मैचों में भारत को जीत दिलाई थी।
कपिल देव-
साल 1982 में भारत को अपना 21 वां टेस्ट कप्तान कपिल देव के रुप में मिला जिन्होंने अगले पांच सालों तक भारत को लीड किया जिसमें हमारे देश ने 34 टेस्ट मैच खेले थे जिनमें से चार मैचों में भारत को जीत मिली थी और 23 टेस्ट ड्रॉ रहे थे।
दिलीप वेंगसरकर और रवि शास्त्री-
इसके बाद दिलीप वेंगसरकर को भारत की कप्तानी मिली जिनके कप्तानी करियर की आखिरी सीरीज का आखिरी मैच वो पहला और आखिरी टेस्ट मैच था जिसमें रवि शास्त्री ने भारत की कप्तानी की थी, इन दोनों ने मिलकर भारत को तीन जीत दिलाई थी।
कृष्णमाचारी श्रीकांत-
साल 1989 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई टेस्ट सीरीज में भारत को कृष्णमाचारी श्रीकांत ने लीड किया और इस सीरीज का हर मैच ड्रा पर ख़त्म हुआ था इसी के साथ श्रीकांत के कप्तानी करियर का भी अंत हो गया था।
श्रीकांत के लिए यह सीरीज कप्तान के अलावा इस नजरिए से भी यादगार थी कि वो इस सीरीज के जरिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सचिन तेंदुलकर के पहले कप्तान बन गए थे।
भारत के पच्चीसवें टेस्ट कप्तान का नाम मोहम्मद अजहरुद्दीन था जिन्होंने लगभग नौ सालों के लम्बे वक्त में भारत को लीड किया था और इस दौरान भारत ने इनकी कप्तानी में कुल 47 मैच खेले थे जिनमें से चौदह मैचों में भारत को जीत नसीब हुई थी और चौदह मैचों में ही हार भी मिली थी।
साल 1932 से भारत के टेस्ट इतिहास को सदी के अंत तक पच्चीस कप्तान मिल चुके थे और यह एक अजीब सी बात है कि भारत के पच्चीसवें कप्तान अजहरुद्दीन वो पहले खिलाड़ी थे जिन्होंने टेस्ट क्रिकेट में भारत की जीत के आंकड़े को डबल डिजिट तक पहुंचाया था।
सचिन तेंदुलकर-
उनके बाद सचिन तेंदुलकर भारत की टेस्ट टीम के अगले कप्तान बने लेकिन वो दौर इस महान बल्लेबाज के करियर का सबसे बुरा दौर माना जाता है जहां सचिन अपनी कप्तानी के जरिए भारत को वो खुशी नहीं दे पाए जो वो सिर्फ बल्लेबाज के तौर पर दे रहे थे।
सौरव गांगुली-
उनके बाद भारत को नई सदी में अपने अब तक के इतिहास का सबसे बड़ा कप्तान मिला जिसे हम सौरव गांगुली के नाम से जानते है।
कप्तान गांगुली की लीडरशिप में देश ने 49 टेस्ट मैच खेले थे जिनमें से इक्कीस में भारत को जीत मिली थी।
कप्तान राहुल द्रविड़-
गांगुली के बाद भारत का अगले कप्तान राहुल द्रविड़ थे जिनकी कप्तानी में देश ने 35 सालों बाद वेस्टइंडीज में सीरीज अपने नाम की थी साथ ही अफ्रीका में भारत की पहली टेस्ट जीत के दौरान भी कप्तान द्रविड़ ही थे।
सहवाग ने भी भारत को टेस्ट क्रिकेट में अलग अलग समय अंतराल में लीड किया और इनकी कप्तानी में खेले चार मैचों में से दो मैचों में भारत को जीत मिली थी।।
अनिल कुंबले-
द्रविड़ के कप्तानी छोड़ने के बाद अनिल कुंबले भारत के नये कप्तान बने थे और इनकी कप्तानी के दौरान भारत को 14 में से 3 मैचों में जीत मिली थी।
महेंद्र सिंह धोनी-
अनिल कुंबले के संन्यास के बाद भारत को क्रिकेट इतिहास का सबसे चहेता और महान कप्तान महेंद्र सिंह धोनी मिला जिनकी कप्तानी में भारत टेस्ट में दुनिया की नंबर एक टीम बनी थी।
विराट कोहली-
धोनी के संन्यास के बाद भारत की कमान विराट कोहली ने संभाली और अपने कप्तानी करियर में खुद को सबसे सफल भारतीय टेस्ट कप्तान बना लिया था।
कोहली की कप्तानी में भारत ने कई ऐतिहासिक जीत हासिल की और कुल 68 मैच खेले जिनमें से 40 में भारत को जीत मिली थी।
अंजिक्या रहाणे और के एल राहुल-
अंजिक्या रहाणे और के एल राहुल ने भी भारत को टेस्ट क्रिकेट में लीड किया है जिन्हें मिलाकर कप्तानों की गिनती चौंतीस तक पहुंच जाती है।
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