दोस्तों कहते हैं कि अगर आप दुनिया (World) में अपना नाम बनाना चाहते हैं,एक अलग पहचान (Identification) बनाना चाहते हैं, तो आपमें कुछ कर गुजरने की क्षमता होनी अति आवश्यक (Necessary) है। कड़ी मेहनत, लग्न और अपने काम के प्रति लगाव (Attachment) जैसे गुण आपको दुनिया का सबसे सफल (Success) व्यक्ति बनाने में अहम योगदान (Contribution) देते हैं। शायद यही कारण है कि सचिन तेंदुलकर जिन्होंने क्रिकेट को अपना सब कुछ दे दिया, उनके क्रिकेट के प्रति जुनून और कीर्तिमानों (Records) के चलते ही उनका इतना नाम है और मास्टर ब्लास्टर जैसे उपनाम (Surname) और गॉड (God) ऑफ क्रिकेट की उपाधि (Degree) उनके नाम है। लेकिन हर किसी की क़िस्मत (destiny) सचिन जैसी नहीं होती।जिसे 16 वर्ष की आयु (age) में ही बड़े मंच पर मौका मिल जाए। हालांकि आज के समय में होलसेल में खिलाड़ियों को कप्तानी (Captaincy) और चयन होता देख ये सब कभी कभी मजाक सा लगता है।लेकिन इस सब के बीच हम कुछ ऐसे खिलाड़ियों को भूल गए हैं जो सवा सौ करोड़ (1.5 billion) से भी अधिक आबादी (Population) वाले इस मुल्क (Country) में कमाल की प्रतिभा (Talent) के धनी थे, जिनमें टैलेंट की तो कोई कमी नहीं थी, और उनकी गेम ऊंच कोटि की थी। घरेलू क्रिकेट में उन्होंने लगातार रन बनाए, विकेट चटके। घरेलू सर्किट में काफ़ी नाम कमाया।लेकिन इसके बावजूद,शायद उनके हाथ में भारतीय टीम में है खेलने वाली रेखा मौजूद नहीं थी । कहने को तो कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती,पर इन खिलाड़ियों को इस कहावत से नफरत (Hate) होगी।तो चलिए दोस्तों,आज हम आपको नारद टीवी की नई सीरीज अनलकी टैलेंट्स ऑफ़ इंडियन क्रिकेट के दूसरे पार्ट में उन भारतीय खिलाड़ियों से अवगत (Aware) कराएंगे जिनका पूरा करियर (Career) सिर्फ और सिर्फ इस इंतज़ार (Wait) में बीत गया कि कभी तो नीली जर्सी में मौका मिलेगा।पर चयनकर्ताओं ने उनके करियर को बर्बाद करने की मानो किसी से सुपारी ली थी।पर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के वे भी हकदार थे।
5. पदमाकर शिवालकर = पदमाकर शिवालकर ख़राब युग (Era) में जन्म लेने का एक उपयुक्त (Suitable) उदाहरण हैं। क्योंकि जो उनकी स्पिन गेंदबाजी (Bowling) की कला थी, और घंटों तक गेंद को सटीक (Accurate) टप्पे पर डालते रहने का टैलेंट, विश्व (World) के सबसे कठीन गेंदबाज बनने का वो हथियार उनके पास था। बल्लेबाज (Batsman) उनकी गेंद पर केवल रन बनाने का मौका ढूंढते रहते मगर उन्हें सफ़लता (Success) न मिलती। जिन्होंने भी उन्हें क्रिकेट खेलते देखा, उन्होंने यही कहा कि ये विश्व (World) के सबसे महान स्पिनर (Spiner) बनेंगे।लेकिन अफ़सोस, ऐसा कभी न हो सका।क्योंकि उन्हें कभी भारतीय टीम में खेलने का मौका ही नहीं मिला। और वे ऐसा कमाल कभी अंतरराष्ट्रीय (International) स्तर पर न दिखा सके। उस वक्त भारत के पास प्रसन्ना, वेंकट राघवन, और चंद्रशेखर जैसे वर्ल्ड क्लास स्पिनर थे। और टीम में एक स्थान के लिए उनमें और बिशन सिंह बेदी में होड़ थी।और पहले बेदी को मौका मिला। लेकिन अफ़सोस ये मैच विनर (Winner) पूरे करियर सिर्फ़ अपनी बारी का इंतज़ार करता रह गया। मुंबई के सर्वाधिक (Most) विकेट टेकर रहे शिवालकर अपने समय के सबसे फिट खिलाड़ियों में शुमार (Counts) हैं। और उन्होंने अपना अंतिम मुकाबला (Competition) 48 वर्ष की आयु में खेला। अपने 26 वर्ष के करियर में वे उस मुम्बई टीम का हिस्सा (Part) रहे जिन्होंने 22 वर्ष में 20 बार रणजी ट्रॉफी अपने नाम की। 20 से भी नीचे की औसत (Average) से उन्होंने 589 विकेट (Wicket) लिए। और वे घरेलू (Domestic) क्रिकेट के सर्वकालीन (All Time) महान गेंदबाज हैं। मगर ये दिग्गज (Giants) कम से कम एक बार तो भारतीय जर्सी पहनने के हकदार थे। अभी हाल ही में उन्हें कॉलोनेल सीके नायडू लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित भी किया गया।
4. प्रवीण तांबे = प्रवीण तांबे से तो खैर कोई भी अनजान नहीं है। उनकी ज़िंदादिली (Exhilaration), इच्छा शक्ति और सहनशीलता (Tolrence) के हम सब कायल (Convincing) हैं। अपना करियर बतौर (As) तेज़ गेंदबाज शुरू करने वाले तांबे ने पूरा जीवन केवल क्रिकेट को समर्पित (Dedicated) कर दिया।और उनका क्रिकेट के प्रति जुनून (Passion) और प्यार वाकई काबिले (Capable) तारीफ़ है। अपना पूरा करियर केवल मुंबई में गली क्रिकेट और टाईम्स शील्ड जैसे टूर्नामेंट (Tournament) खेलने वाले तांबे को कई वर्षों तक केवल ठुकराया गया। और उम्र के कारण किनारे किया गया। लेकिन इस महान स्पिनर (Spiner) के टैलेंट, फिटनेस और घंटों कसी हुई गेंदबाजी करने के टैलेंट को हमेशा नज़रंदाज़ किया गया। हालांकि सन्यास (Retirement) लेने की 41 की आयु में आईपीएल (IPL) खेलने के बाद वे सुर्खियों (Limelight) में आए और तब उन्हें 43 की आयु में घरेलू (Domestic) क्रिकेट में मौके मिले। तांबे ने हर लेवल पर परफॉर्म (Perform) किया। लेकिन उन्हें कभी भारतीय टीम में खेलने का मौका नहीं मिला। उन्होंने मुंबई रणजी टीम में खेलने का सपना तो पूरा कर लिया।मगर अफसोस,वे कभी भी नीली जर्सी में नहीं खेल पाए।
ये भी पढ़े – 1 हफ़्ता और 4 बड़े खिलाड़ियों का संन्यास
3. देवेंद्र बुंदेला = दोस्तों क्रिकेट के सबसे अनलकी (Unlucky) टैलेंट्स की बात हो रही हो और उसमे देवेंद्र बुंदेला का नाम न आए, ऐसा कभी हो सकता है क्या। अपने 23 वर्ष के करियर में शानदार (Fabulous) प्रदर्शन करने वाले इस दिग्गज (Giants) की फैन फॉलोइंग (Following) कुछ इस कद्र थी कि डोमेस्टिक सर्किट (Circuit) में सिर्फ़ इनका बोलबाला था। और दर्शक इनकी बल्लेबाजी घंटों तक बिना हिले टकटकी लगाकर देखा करते। इनकी इस लाज़वाब रेपुटेशन (Reputation) को देख हर फैन को यह विश्वास (Belief) था आज नहीं तो कल चयनकर्ताओं (Selectors) की नज़र कभी तो इनपर पड़ेगी और लगातार रन बनाते आ रहे उनके इस हीरो को कभी वे नीली जर्सी में देखेंगे। लेकिन दुर्भाग्यवश,तेंदुलकर,द्रविड़,सहवाग, गंभीर,लक्ष्मण जैसे खिलाड़ियों से सजी लाइनअप होते हुए टीम में जगह पाना असम्भव (Impossible) सा प्रतित (Per) होता है,और वो भी तब जब आप एक छोटे शहर से आते हों। और यही हुआ बुंदेला के साथ।तकनीक,एलिगेंस,प्रतिभा और टैलेंट की कोई कमी न होने के बावजूद कभी सिलेक्टर्स (Selectors) ने उन्हें टीम में लेना ज़रूरी ही नहीं समझा,और उनकी घरेलू क्रिकेट की उपलब्धियों (Achievements) को केवल अनदेखा कर इस दिग्गज के करियर को एक दिन खत्म कर दिया गया। रणजी ट्रॉफी के ऑल टाइम हाई स्कोरर्स (Scorer) की सूचि (List) में तीसरे स्थान पर आने वाले बुंदेला ने 40 से ऊपर की औसत (Average) से 10000 से भी अधिक प्रथम श्रेणी (Category) रन बनाए। यदि अंतरराष्ट्रीय (International) स्तर पर मौके मिले होते तो शायद देवेंद्र के भी नाम कई रिकॉर्ड्स (Records) होते। लेकिन अफ़सोस, उन्हें केवल पूर्व क्रिकेटर और मध्य प्रदेश के कप्तान के रूप में याद किया जाता है।
2. राजिंदर गोयल = दोस्तों क्या आप जानते हैं कि रणजी ट्रॉफी में सर्वाधिक (Trophy) विकेट लेने वाला कौनसा खिलाड़ी है। चलिए हम आपको बताते हैं। वे महान गेंदबाज थे राजिंदर गोयल। लगभग 3 दशक (Century) खेलने वाले गोयल के नाम 637 विकेट हैं। यहां तक कि सुनील गावस्कर ने अपनी किताब “आइडल्स” में इनका ज़िक्र (Mention) करते हुए कहा कि गोयल सबसे कठिन गेंदबाज (Bowlers) थे जिन्हें वे कभी खेलना नहीं चाहेंगे। वे उनके खिलाफ़ कभी भी क्रीज़ (Crease) पर सहज (Simple) नहीं होते थे। और उनकी गेंद को पढ़ पाना काफ़ी मुश्किल था। एक दिग्गज के ये शब्द इस बात को दर्शाते (Showing) हैं कि गोयल किस कद्र (Respect) घातक (Fatal) गेंदबाज थे। लेकिन इसके बावजूद वे भारत के लिए एक टेस्ट खेलने को भी तरसते रहे। लगातार प्रथम श्रेणी में एक से एक महान स्पैल (Spell) करने के बावजूद उन्हें कभी प्लेइंग 11 में लिया नहीं गया। उनसे पहले हमेशा तवज्जो (Attentence) बिशन सिंह बेदी को ही दी गई। राजिंदर गोयल बाएं हाथ के उन कंजूस गेंदबाजों में से एक थे जिन्हें ड्राइव मारने के लिए बल्लेबाज़ों को केवल इंतज़ार करना पड़ा। और इस महान खिलाड़ी को भारतीय टीम की जर्सी पहनने का।
ये भी पढ़े – Adam Gilchrist vs McCullum Their Era vs Our Era
1. अमोल मजूमदार = दोस्तों आपने वो सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली की हैरिस शील्ड में 664 रन की रिकॉर्ड (Record) तोड़ साझेदारी के बारे में तो सुना ही होगा। इसी पारी के बाद ये दो खिलाड़ियों ने काफ़ी लाइमलाइट (Limelight) बटोरी। ये दोनों तो स्टार बन गए, मगर उस दिन टीम का अगला बल्लेबाज पैड पहनकर तैयार एक खिलाड़ी अपनी बारी का इंतज़ार करता रह गया। और आलम ऐसा रहा कि अपने पूरे करियर (Career) सिर्फ़ उसके नसीब में इंतज़ार ही था। वो खिलाड़ी थे अमोल मजूमदार। ये कहानी उनके करियर में बार बार दोहराई गई। अपने पहले ही रणजी ट्रॉफी मुकाबले में लाज़वाब 260 रन बना उन्होंने इतिहास (History) रच दिया और कई रिकॉर्ड्स बनाए। 1994 में भारतीय अंडर 19 के कप्तान (Captain) रहे अमोल को भारतीय ए टीम में द्रविड़ और गांगुली के साथ भी देखा गया। और “अगले तेंदुलकर” का लेबल भी लग गया। लेकिन इसके लिए पहले टीम में मौका भी देना होता है। जो कि कभी नहीं हुआ। साल बीतते गए और अमोल रनों का पहाड़ खड़ा करते गए, उन्हें घरेलू क्रिकेट में काफ़ी सफ़लता मिली। यही नहीं,सर्वाधिक (Most) प्रथम श्रेणी रन बनाने का रिकॉर्ड भी एक वक्त उन्होंने अपने नाम किया।लेकिन इससे बड़ी दुःख की बात और क्या हो सकती है कि लगातार 2 दशक (Decade) तक शानदार प्रदर्शन करने के बाद भी कभी सिलेक्टर्स (Selectors) को वे कभी दिखाई नहीं दिए। हालांकि इस दौरान कई बिलो एवरेज खिलाड़ियों को भी भारतीय टीम में मौके मिले,लेकिन उन्हें कभी टीम में कंसीडर तक नहीं किया गया। 50 से भी अधिक औसत रखने वाले अमोल के नाम 28 शतक हैं।और 11000 से भी अधिक प्रथम श्रेणी रन बनाने के अलावा वे रणजी के दूसरे टॉप स्कोरर (Scorer) हैं। साथ ही वे मुंबई के सबसे सफल खिलाड़ी भी थे। लेकिन उनके हाथ सिर्फ और सिर्फ निराशा और इंतज़ार लगा। एक दिन रवि शास्त्री ने उनके साथ पुरानी तस्वीर शेयर करते हुए ट्वीट किया था कि इस नायब हीरे को टीम में न खिलाना, भारत का ही नुकसान था।जो कभी पूरा नहीं हो पाएगा। और ये बात 16 आने सही भी है।
तो दोस्तों ये थे वो बदनसीब (Unfortunate) क्रिकेटर्स जिन्हें कभी भारतीय टीम में खेलने के मौके मिले ही नहीं और चयनकर्ताओं (Selectors) ने उनके हाथ में सिर्फ़ इंतज़ार और निराशा थमा दी। उनके टैलेंट (Talent) की कभी कद्र (Respect) ही नहीं की गई और केवल रणजी खेलते खेलते उनका करियर समाप्त हो गया। कौन जाने, अगर इन्हें कभी मौके मिले होते तो आज ये भी विश्व के महान खिलाड़ी होते। खैर, क़िस्मत से भला कौन लड़ सकता है। आज की पोस्ट में इतना ही। आशा करते हैं कि आपको ये पोस्ट पसंद आई होगी, अपने दोस्तों में शेयर ज़रूर करें।
वीडियो देखे –