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Supporting Roles Who Overshadowed The Lead Characters In Bollywood

फ़िल्म (Film) कोई भी हो चाहे वह हिट (Hit) हो या फ्लॉप (Flop), उसकी स्टोरी (Story) कैसी भी हो अच्छी हो या बुरी, कोई न कोई किरदार (Character) ऐसा ज़रूर होता है जो याद (Memory) रह जाता है। ऐसे किरदार (Character) न सिर्फ उस फ़िल्म (Film) की पहचान (Identification) बन जाते हैं बल्कि उन किरदारों को निभाने वाले एक्टर (Actor) के लिए भी वह किरदार एक टर्निंग (Turning) प्वाइंट (Point) भी बन जाते हैं। बॉलीवुड (Bollywood) की ऐसी कई फ़िल्में (Films) हैं जिनके हीरो-हिरोइन को लोगों ने भले ही भुला दिए हों, लेकिन उन फ़िल्मों के किसी ख़ास किरदार को आज भी याद किया जाता है। आज के पोस्ट में हम ऐसी ही पांच (Five) फ़िल्में और उन एक्टर्स (Actors) के बारे में चर्चा (Discussion) करने वाले हैं जो अपने ख़ास किरदार के ज़रिये उन फ़िल्मों की पहचान बन गये।

नमस्कार दोस्तों…

हासिल- इरफान खान

हासिल- इरफान खान

इस कड़ी में हम शुरुआत करते हैं 16 मई, 2003 में आयी फिल्म (Film) हासिल से, इस फ़िल्म में एक्टर (Actor) इरफान खान नेगेटिव (Negative) किरदार में थे लेकिन अपने किरदार के ज़रिये जो छाप उन्होंने उन्होंने छोड़ी वो आज भी यादगार (Memorable) है। आज भी इरफान की टॉप 5 फिल्मों का नाम लिया जाए तो हासिल का नाम सबसे पहले लिया जाता है क्योंकि (Because) इसी फिल्म (Film) से इरफान ने बॉलीवुड (Bollywood) में अपनी पहचान बनायी थी। तिग्मांशु धूलिया के निर्देशन (Direction) में बनीं फिल्म ‘हासिल’ एक क्राइम (Crime) ड्रामा (Drama) फिल्म थी जिसमें इरफान ख्रान के अलावा जिम्मी शेरगिल, आशुतोष राणा, राजपाल यादव और हर्षिता भट्ट अहम रोल (Role) में थे। लेकिन फ़िल्म (Film) देखने के बाद दर्शकों (Audience) को याद रहा तो बस इरफान खान का चेहरा (Face) । इस फिल्म में रणविजय सिंह के किरदार (Character) के लिए इरफान को बेस्ट (Best) नेगेटिव (Negative) रोल का फिल्म फेयर (Fare) अवॉर्ड (Award) भी मिला था। ख़ास बात कि इससे पहले इरफान करीब दो दर्जन (Dozen) फ़िल्में कर चुके थे, लेकिन अच्छी एक्टिंग (Acting) के बावज़ूद उनकी वह पहचान नहीं बन पा रही थी जो उनके जैसे एक्टर को मिलनी चाहिए थी। इस फ़िल्म में इरफान की आँखें दर्शकों (Audience) को थियेटर (Theatre) से बाहर निकलने पर भी याद रहती हैं, बिल्कुल फ़िल्म में उनके द्वारा बोले इस डॉयलॉग (Dialogs) की तरह कि “नज़र का ही तो खेल है साब, वर्ना साला दिल तो हमारा भी साफ है। भगवान ने हमें ऐसी आखें दे दी हैं, क्या करें?”

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छात्र राजनीति (Politics) पर आधारित (Based) इस फिल्म में अपराधी (Criminal) से नेता (Minister) बनने वाले लोगों को कहानी (Story) कही गयी है। हालांकि इस फिल्म की चर्चा तो आज ख़ूब की जाती है लेकिन एक ऐसा भी वक़्त था जब इसको बनाने के लिए एक प्रोड्यूसर (Producer) भी नहीं मिल रहा था। फिल्म के डायरेक्टर (Director) तिग्मांशू धूलिया को इसे फाइनेंस (Finance) कराने में काफी पापड़ बेलने पड़े थे। हर जगह ना सुनने के बाद उन्होंने एक आइडिया निकाला जिसमें एक बड़ा रिस्क भी था लेकिन उन्हें अपनी कहानी पर पूरा भरोसा (Trust) था। उन्होंने प्लान (Plan) किया कि थोड़े पैसे जुटाकर किसी तरह से पहले फिल्म का क्लाइमेक्स (Climax) सीन (Seen) शूट (Shoot) करेंगे फिर उसे लेकर प्रोड्यूसर्स (Producers) के पास जाएंगे। बस फिर क्या था कंभ मेले में फिल्माये क्लाइमेक्स सीन को देखने के बाद हर किसी को कहानी (Story) भा गई और इस पर पैसा लगाने को लोग तैयार भी हो गए। ख़ास बात कि इस फ़िल्म को क्रिटिक्स (Critics) ने पहले ना पसंद किया और 2 स्टार (Star) से ज़्यादा नहीं दिया लेकिन आज IMDb रेटिंग 10 में 7.6 की है।

यह फ़िल्म इरफ़ान (Ifran) खान (Khan) के लिए याद की जाती है, यहाँ तक कि डायरेक्टर तिग्मांशु ने कहा था कि यदि इरफान नहीं होते तो हासिल नहीं होती। दरअसल तिग्मांशु और इरफान नेशनल (National) स्कूल (School) ऑफ ड्रामा (Drama) में मिले थे जहाँ उन्होंने इरफान की एक्टिंग (Acting) देखी थी और मन बना लिया था कि वो जब भी अपनी पहली फिल्म (Film) बनाएंगे उसमें इरफान को ही लीड (Lead) रोल (Role) में लेंगे। तिग्मांशु ने ‘हासिल’ के बाद इरफान के साथ ‘साहब, बीवी और गैंगस्टर’ के अलावा ‘पान सिंह तोमर’ जैसी नायाब फ़िल्म बनायीं और नेशनल (National) फिल्म (Films) अवार्ड्स (Awards) में बेस्ट (Best) फिल्म का खिताब पाया।

दोस्तों भले ही अब फिल्म ‘हासिल’ में इरफान का किरदार (Character) किसी एक्टर के लिए ड्रीम (Dream) रोल (Role) बन गया हो, लेकिन आपको यह जानकर ताज्जुब (Surprise) होगा कि यह रोल कभी एक्टर (Actor) मनोज बाजपेयी को भी ऑफर (Offer) हुआ था लेकिन उन्होंने इस रोल को करने से तब मना कर दिया था। दरअसल वह इस बात से डरते थे कि कहीं उनकी इमेज (Image) विलेन (Villain) की न बन जाए। क्योंकि मनोज तब तक अपनी पहचान बना चुके थे।

सत्या-मनोज बाजपेयी- 

सत्या-मनोज बाजपेयी-

बात मनोज बाजपेयी की जब चल ही निकली है तो भला उनकी फ़िल्म (Film) सत्या और उनके द्वारा निभाये भीखू म्हात्रे को कैसे भुलाया जा सकता है जिसने मनोज बाजपेयी की पूरी लाइफ (Life) ही बदल कर रख दी थी। 3 जुलाई 1998 को रिलीज (Release) हुई फिल्म ‘सत्या’ में भीकू म्हात्रे का किरदार (Character) आज भी मनोज के ही नहीं बॉलीवुड (Bollywood) के बेस्ट (Best) रोल्स (Role) में से एक माना जाता है। फ़िल्म ‘सत्या’ अंडरवर्ल्ड (Underworld) पर बनी फ़िल्मों के लिहाज से कई मायनों में मील का पत्थर मानी जाती है। फ़िल्म में हीरो (Hero) जे डी चक्रवर्ती और हीरोइन उर्मिला मातोंडकर हैं। इसके अलावा परेश रावल, सौरभ शुक्ला, आदित्य श्रीवास्तव, सुशांत सिंह, मनोज जोशी और मकरंद देशपांडे जैसे एक्टर्स (Actors) की भरमार है लेकिन फ़िल्म (Film) में मनोज बाजपेयी ने जो असर (Effects) छोड़ा वह आज तक कायम है। मनोज को बॉलीवुड (Bollywood) में पहचान भी राम गोपाल वर्मा की इसी फिल्म से मिली थी और इसके बाद ही बॉलीवुड (Bollywood) में काम मिलना शुरू हुआ था। हालांकि मनोज बाजपेयी इससे पहले ‘बैंडिट क्वीन’ में अहम (Main) रोल (Role) तो कर चुके थे लेकिन तब तक जाना-पहचाना चेहरा नहीं थे। इस फ़िल्म से ही डायरेक्टर (Director) अनुराग कश्यप को भी राइटर (Writer) के तौर पर बॉलीवुड में एक बड़ा ब्रेक (Brake) मिला था और ख़ास बात कि यह ब्रेक (Brake) भी मनोज बाजपेयी ने ही उन्हें दिलवाया था फिल्म (Film) के डायरेक्टर (Director) रामगोपाल (Ramgopal) वर्मा (Verma) से मिलवाकर। इस फिल्म (Film) की राइटिंग (Writing) में अनुराग का सपोर्ट (Support) किया था एक्टर (Acting) सौरभ शुक्ला ने जो फिल्म में कल्लू मामा के किरदार (Character) में भी थे।

“मुंबई का किंग कौन, भीखू म्हात्रे” 30 सकेंड (Second) का सीन (Seen) आपको याद ही होगा। इस सीन (Seen) को आज भी याद किया जाता है लेकिन आपको यह जानकर हँसी आयेगी कि यह सीन (Scene) उन्होंने बहुत डरते-डरते किया था क्योंकि मनोज को ऊँचाई से डर लगता है। फिल्म ‘सत्या’ पर उदय भाटिया की लिखी किताब ‘बुलेट ओवर बॉम्बे’ के मुताबिक, “शूट करते वक्त सौरभ शुक्ला नीचे से मनोज की टाँगे (Legs) पकड़े हुए थे ताकि वो डरे नहीं, लेकिन लॉन्ग (Long) शॉट (Short) के दौरान ऐसा करना मुमकिन नहीं था। उस सीन में मनोज जल्दी-जल्दी ज़ोर से कुछ भी चिल्लाए, बाद में उसे डब किया गया।”

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कम लोगों को ही पता होगा कि जब फ़िल्म (Film) शुरू हुई थी तो मनोज बाजपेयी को ‘सत्या’ यानी मेन (Main) हीरो के रोल (Role) के लिए साइन (Sign) किया गया था लेकिन स्क्रिप्ट (Script) में जब भीखू म्हात्रे का रोल (Role) लिखा गया तो रामगोपाल वर्मा को लगा कि उस रोल के साथ न्याय करने के लिए मनोज जैसे एक्टर की ज़रूरत है। हालांकि शुरुआत में मनोज बाजपेयी इस बात से काफी निराश हुए थे कि उन्हें मेन रोल से हटा दिया गया लेकिन बाद में यही रोल उनके करियर (Career) के लिए टर्निंग (Turning) प्वाइंट (Point) साबित हुआ।

अपने एक इंटरव्यू (Interview) में मनोज बाजपेयी ने फिल्म ‘सत्या’ को लेकर अपने अनुभव (Experience) को साझा (Share) करते हुए कहा कि “मैं इसे गेम चेंजर के रूप में देखता हूं। इस फिल्म ने इंडस्ट्री (Industry) को पूरी तरह से बदल (Change) दिया था। इस फिल्म ने ऑडियंस (Audience) को फिल्में देखने का एक नया नजरिया (Perspective) दिया था। इस फिल्म के बाद जिस तरह से कहानियां बताई गईं या जिस तरह से लोग फिल्म निर्माण या प्रदर्शन को देखते हैं, सब कुछ इंडस्ट्री (Industry) और दर्शकों (Audience), दोनों के लिए बहुत नया था। सत्या की भारी सफलता (Success) के बाद मुझे भूमिकाएं, सम्मान और बड़े ऑफिसों में एन्ट्री मिलना शुरू हो गया।’

रन-विजयराज-

Run Movie Role

इस कड़ी में अगला नाम है एक्टर (Actor)  विजयराज (Vijayraj) का जिनका नाम सुनते ही आपको भी न सिर्फ उस फिल्म का नाम बल्कि उनका वह किरदार (Character) याद आ ही गया होगा जिसकी हम चर्चा (Decision)  करने वाले हैं।

रोल (Role) कैसा भी हो विजय अपनी ऐक्टिंग (Acting) से उसे ख़ास बना देते और जिसे लोग हमेशा याद रखते भले ही वह फ़िल्म फ्लाप (Flop) ही क्यों न हो। अभिषेक बच्चन और भूमिका (Role) चावला की ‘रन’ फ़िल्म इसका सबसे बड़ा उदाहरण (Example) है। यह फ़िल्म फ्लाप (Flop) होने के बाद भी टीवी (TV) और इंटरनेट (Internet) पे सिर्फ विजय के काम की वज़ह से बार-बार देखी गई। साल 2004 में आयी फिल्म ‘रन’ की कहानी (Story) और अन्य किरदार लोगों को भले ही न याद हो लेकिन विजय राज का कॉमिक (Comic) कैरेक्टर (Character) और फ़िल्म में उनपे फ़िल्माया हर सीन आज भी काफी पॉपुलर (Popular) है, जिसे बच्चे से लेकर बड़े तक सभी बड़े चाव से देखा करते हैं। अभिषेक बच्चन अभिनीत फिल्म (Film) रन विजय राज की जिंदगी (Life) का टर्निंग (Turning) पॉइंट (Point) साबित हुई थी, इस फिल्म का उनका कॉमेडियन (Comedian) का किरदार (Character) हीरो समेत सभी स्टारकास्ट (Starcast)  पर भारी पड़ गया था।

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तमिल फिल्मों (Films) के डायरेक्टर (Director) जीवा द्वारा डायरेक्ट (Direct) इस फिल्म में विजय राज का किरदार (Character) इतना मशहूर (Famous) हुआ था कि आज लोग इस फिल्म को विजय राज के कॉमेडी (Comedy) सीन्स (Scene) से ही याद करते हैं। फिल्म में विजयराज का कौआ बिरयानी वाला वो सीन हो या छोटी गंगा (Ganga) समझकर नाले में कूदने का या फिर पेटीकोट बाबा का, हर सीन (Scene) में दर्शक (Audience) हँस-हँसकर लोटपोट हो जाते हैं। ख़ास बात की इसे लोग बार-बार देखना पसंद करते हैं और कभी बोर (Bor) नहीं होते हैं। हालांकि विजयराज पहले भी कई फ़िल्में कर चुके थे और लोग उनकी ऐक्टिंग के कायल थे। विजय राज को फ़िल्मी दुनिया (World) में पहला मौका राम गोपाल वर्मा की ही फिल्म ‘जंगल’ से मिला। हालांकि विजय की पहली रिलीज़ (Release) फिल्म वर्ष 1999 में आयी फ़िल्म भोपाल (Bhopal) एक्सप्रेस (Express) थी और जंगल उसके बाद रिलीज़ (Release) हुई थी। इसके बाद उन्हें 2001 में आई मीरा नायर की फिल्म ‘मानसून वेडिंग’ में काम मिला जो उनके लिये बहुत मददगार साबित हुआ। फिल्म मानसून (Monsoon) वेडिंग में विजय ने पी के दूबेजी का किरदार (Character)  निभाया था जो काफी मशहूर (Famous) हुआ और दर्शकों (Audience) के साथ-साथ आलोचकों को भी उनका कॉमिक (Comic) अंदाज बेहद पसंद आया। इस रोल के लिये विजयराज को कई सारे अवाॅर्ड (Award) में नॉमिनेट (Nominate) भी हुए थे।

दोस्तों भले ही रन या दूसरी फ़िल्मों में विजयराज के कॉमिक (Comic) किरदार को आज भी याद किया जाता है लेकिन उन्हें अपने  दूसरे रोल्स (Roles) में भी उतनी ही तारीफ़ मिली है जिसका उदाहरण (Example) है फ़िल्म ‘रघु रोमियो’ जो बतौर लीड (Lead) ऐक्टर उनकी पहली फिल्म थी। इस फिल्म से विजय ने अपनी ऐक्टिंग (Acting) से यह साबित कर दिया था कि वे कॉमेडी से हटकर भी कुछ कर सकते हैं। इसके अलावा साल 2011 में आई फिल्म डेल्ही बेली में एक डॉन (Don) का किरदार निभाया, उनका यह किरदार सीरियस (Serious) और कॉमेडी (Comedy) दोनों रंग लिये हुए था जो उन्होंने बहुत ही बेहतरीन अंदाज़ में निभाया। गली बॉय, डेढ़ इश्किया के अलावा  ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ भी विजयराज की डिफरेंट (Different)  फ़िल्म है इस फ़िल्म में उन्होंने गंगूबाई की दुश्मन ‘रजिया बाई’ नाम के किन्नर का यादगार किरदार निभाया था।

मुकेश तिवारी- चाइनागेट 

डाकू जगीरा

90 के दशक में बड़े परदे पर एक ऐसे दमदार ऐक्टर की एंट्री (Entry) हुई जिसने ढेरों दिग्गज़ ऐक्टर्स (Actors) की मौजूदगी के बावज़ूद, न सिर्फ बतौर (As) विलेन (Villain) अपनी एक छाप छोड़ी बल्कि दर्शकों (Audience) के दिलों में एक ख़ौफ़ पैदा करने में भी कामयाबी (Success) हासिल की, और उस ऐक्टर का नाम है मुकेश तिवारी। अपनी पहली ही फिल्म ‘चाइनागेट’ में निभाये (Fullfil) अपने क़िरदार (Character) डाकू जगीरा को मुकेश तिवारी ने कुछ इस तरह जीवंत किया कि उस क़िरदार के साथ-साथ औसत (Average) रूप से सफल होने के बावज़ूद यह फिल्म भी यादगार बन गयी।

दोस्तों मुकेश को जब चाइनागेट के लिये बुलाया गया था तो उन्हें विश्वास (Trust) ही नहीं हुआ था, उन्हें लगा कि कोई उनके साथ मस्ती कर रहा है। 5 दिनों बाद फिर से किसी ने उन्हें बताया कि नसीरुद्दीन शाह तुमसे बात करना चाहते हैं। दरअसल मुकेश को एनएसडी (NSD) के दौरान नसीरुद्दीन शाह ने ट्रेनिंग (Tanning) दी थी, उनका नाम सुनते ही मुकेश भागे-भागे पोसीओ पहुँचे और नसीरुद्दीन शाह को फोन (Call)  लगाया तो नसीरुद्दीन शाह मुकेश पर ख़ूब चिल्लाये और कहा “5 दिन से मैं तुम्हारे फोटोज़ (Photos) का वेट (Wait) कर रहा हूँ लेकिन तुम्हारा कुछ पता ही नहीं है।” फिर उन्होंने चाइनागेट (China Gate) फिल्म के बारे में बताया। मुकेश ने फौरन अपनी तस्वीरें कूरियर (Courier) कर दी और कुछ दिनों के बाद अचानक फोन आया कि अगले दिन ही उन्हें मुंबई (Mumbai) पहुँचना है। अब मुकेश के सामने एक अलग समस्या खड़ी हो गयी थी और वो थी पैसों की समस्या, क्योंकि इतनी जल्दी दिल्ली (Delhi) से मुंबई सिर्फ़ फ्लाइट (Flight) से पहुँचा जा सकता था जिसमें 4500 का खर्चा था। ऐसे में उनकी मदद (Help) की, एनएसडी (Nsd) में ही चौकीदार (Watchman) का काम करने वाले उनके दोस्त सतवीर ने। उन्होंने फौरन बैंक (Bank) जाकर 5000 रुपये निकाले और मुकेश के हाथों में रख दिया। मुकेश ने कहा कि लेकिन मैं ये पैसे कैसे लौटाउंगा क्योंकि मेरी पेमेंट तो बस 3500 ही है। तब सतवीर ने कहा कि “कोई बात नहीं आधा-आधा करके अपने पेमेंट में से लौटा देना।”

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ख़ैर अगले दिन मुकेश मुंबई पहुँच गये और अपना ऑडिशन (Audition) दिया। दोस्तों मुकेश को अपने ऑडिशन को लेकर इस बात का डर था कि उनके द्वारा बोला गया संवाद जो कि हिंदी के क्लिष्ट (Complicated) शब्दों (Words) में था पता नहीं ऑडिशन में किसी को समझ में आयेगा भी या नहीं। लेकिन उनकी ऐक्टिंग (Acting) और संवाद (Dialogue) अदायगी पर ख़ूब जमकर तालियाँ बजी  और मुकेश को 20,000 साइनिंग अमाउंट के साथ डाकू जगीरा के रोल (Role) के साइन (Sign) कर लिया गया।

इस रोल के लिये सेलेक्ट (Select) हो जाने के बाद मुकेश (Mukesh) ने फिल्म के डायरेक्टर (Director) राजकुमार संतोषी से इसकी तैयारी के लिये थोड़ा वक़्त माँगा। मुकेश बताते हैं कि उस वक़्त उन्होंने अपना वजन (Weight) बढ़ाने के साथ-साथ ख़ुद से नफ़रत करवाने के लिये कई महीनों (Months) न बाल कटवाये न दाढ़ी बनायी यहाँ तक कई दिनों तक वे नहाये (Bath) तक नहीं, ताकि वे उस रोल को जीवंत कर सकें। वर्ष 1998 में रिलीज़ (Release) हुई इस फिल्म से लोगों के दिलों में दहशत (Panic) मचाने वाले मुकेश को अपने इस रोल (Role) के कई अवाॅर्ड्स (Awards) मिले। हालांकि मुकेश बताते हैं कि फिल्म फेयर (Fare) के अवाॅर्ड के लिये जिससे उन्हें बहुत उम्मीद थी और उसके लिये उन्होंने नया सूट (Suit) भी सिलवाया था लेकिन वो अवाॅर्ड उन्हें नहीं मिला। दरअसल उस साल मुकाबला भी बहुत काँटे का था और बेस्ट (Best) विलेन का यह अवॉर्ड (Award) उन्हीं के बैच के एनएसडी के उनके साथी आशुतोष राणा के हिस्से में फिल्म दुश्मन के लिये मिल गया।
आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि चाइनागेट में इतनी तारीफ़ पाने के बाद भी मुकेश को कई महीनों (Months) तक कोई काम नहीं मिला। इस बात से वे बड़े हैरान थे कि इतने पॉपुलर (Popular) होने के बाद भी उनके साथ ऐसा क्यों हो रहा है तब एक दिन उन्हें यह रियलाइज़ (Realize) हुआ कि दरअसल लोग उन्हें तो पहचानते ही नहीं है वे तो उनके जगीरा के क़िरदार को पहचानते हैं जिसका लुक ओरिजिनल (Originals) में उनसे बहुत ही अलग है। मुकेश ने फौरन 20 डायरेक्टर्स (Directors) की लिस्ट (List) बनायी और सबसे मिलना शुरू कर दिया। 2 महीने के भीतर ही मुकेश के हाथों अब कुल 18 फिल्में थी।

मुकेश हिंदी (Hindi) के अलावा तमिल (Tamil), तेलुगु (Telugu) और पंजाबी (Punjabi) भाषाओं (Languages) में कुल 200 के लगभग फिल्मों (Films) में काम किया है जो अभी भी ज़ारी है। मुकेश पापुलर सीरियल (Serial) ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में भी नज़र आ चुके हैं, जिसे दर्शकों ने इतना पसंद किया था कि उन्हें ‘कॉमेडी नाइट्स विद कपिल’ में काम करने का भी ऑफर (Offer) मिला। हालांकि उन्होंने यब कहकर ठुकरा दिया कि “ऐक ऐक्टर होने के नाते मैं हर तरह के रोल्स (Roles) करता हूँ जिसमें कॉमेडी (Comedian) भी शामिल है, लेकिन मैं कोई कॉमेडियन नहीं हूं।”

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चुप चुप के- राजपाल यादव-

 

Rajpal Yadav

इस कड़ी के आख़िर (Last) में हैं एक्टर (Actor) राजपाल यादव जिन्हें उनके कई किरदारों (Characters) के लिए याद किया जाता है तो वहीं कुछ ऐसी फ़िल्में (Films) भी हैं जिन्हें याद करते ही सबसे पहले राजपाल का ही चेहरा सामने आ जाता है। उन्हीं फ़िल्मों में एक है चुप चुप के’। यह फ़िल्म साल 2006 में आयी रोनी स्क्रूवाला के प्रोडक्शन (Production) में बनी एक कॉमेडी (Comedy) ड्रामा (Drama) फिल्म है जिसका डायरेक्शन (Direction) मशहूर (Famous) डायरेक्टर प्रियदर्शन ने किया था। फिल्म चुप चुप के में शाहिद कपूर, करीना कपूर, नेहा धूपिया, सुनील शेट्टी, परेश रावल, राजपाल यादव, शक्ति कपूर, ओम पुरी और अनुपम खेर जैसे ऐक्टर्स की भरमार है। देखा जाये तो इस फिल्म में कई बड़े बड़े एक्टर्स (Actos) थे लेकिन लाइमलाइट (Limelight) तो राजपाल यादव ले गए। फिल्म यूं तो एक उलझी हुई प्रेम (Love) कहानी (Story) थी लेकिन शाहिद से ज्यादा इस फिल्म को आज भी राजपाल यादव के लिए लोग याद करते हैं। फिल्म में रोटी खाने वाला सीन हो या शराबी का राजपाल यादव ने उन्हें यादगार बना दिया है। इस सीन में शराब का घूँट भर कर राजपाल जैसे एक्सप्रेशन्स (Expression) देते हैं, वैसा कोई ओरिजनल (Original) शराबी भी नहीं दे सकता है। फ़िल्म का यह डॉयलॉग (Dialouge) कि

मैं कोई बोतल से निकला जिन्न हूँ जो एक के बाद एक काम दिये जा रहे हो।

या यह डॉयलॉग (Dialouge) कि यह जन्म से गूंगा बहरा है लेकिन इस बात कि इसने आज तक कोई घमंड (Pride) नहीं किया.. लोग आज भी याद करते हैं और बार-बार देखना पसंद करते हैं।

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इस फिल्म की शूटिंग (Shooting) के दौरान राजपाल यादव के साथ कुछ ऐसा हुआ कि वो उसे जिंदगी भर नहीं भूलेंगे। राजपाल ने अपने एक इंटरव्यू (Interview) में बताया कि एक दिन उनके पास प्रियदर्शन का फोन आया। उन्होंने कहा कि 40 दिनों तक मुझे तुम्हारी जरूरत है। मज़े की बात कि राजपाल को इस बात पर बिल्कुल भी यकीन (Trust) नहीं आ रहा था कि किसी फिल्म में उनके लिए कोई बड़ा रोल (Role) भी है। प्रियदर्शन का फोन आने के बाद राजपाल तैयार होकर उनके सामने पूरा हीरो (Hero) वाला लुक लेकर पहुंच गये। राजपाल यादव ने इस बात का भी खुलासा किया कि उन्होंने अपने लुक (Look) को और भी अच्छा करने के लिए सेलिब्रिटी हेयर स्टाइलिस्ट (Stylist) अलिम हकीम के पास जाकर 26 हजार का हेयरकट (Haircut) करवा लिया था लेकिन जैसे ही वै सेट (Set) पर पहुंचे तो प्रियदर्शन मलयालम भाषा में अपने असिस्टेंट (Artist) को कुछ समझाने लगे। इसके बाद राजपाल को एक असिस्टेंट (Assistent) के साथ हेयरस्टाइल (Hairstyle) चेंज करने के लिए भेज दिया गया जहाँ उनके सिर पर कटोरा रखकर काफी बाल उड़ा दिए।

तो दोस्तों यह थी पाँच फ़िल्में और उनकी पहचान बने पाँच किरदार (Character) और एक्टर(Actor)। आपके जेहन में भी ऐसी कुछ फ़िल्में और किरदार (Character) होंगे जो उसे निभानेवाले एक्टर की याद दिलाते होंगे या कहें उन फ़िल्मों को याद करते ही किसी ख़ास एक्टर की याद आती होगी तो हमें कमेन्ट के ज़रिये ज़रूर बतायें। उम्मीद है आपको हमारा आज का यह पोस्ट ज़रूर पसंद आया होगा….

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