होंग कोंग, आज से लगभग तीस से पैंतीस हजार साल पुराना इतिहास खुद में समेटे चाईना की धरती पर खड़ा आज की दुनिया का वो शानदार शहर जिसकी अपनी अलग पहचान और अलग अर्थव्यवस्था है।
आज दुनिया में अपनी भव्यता के लिए मशहूर यह शहर जिसने उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी में परतंत्रता की बेड़ियों का भार संभाला और फिर खुद को किसी और देश की अधीनता में विश्व के सामने एक उदाहरण के तौर पर खड़ा कर दिया।
हर क्षेत्र में अपनी काबिलियत और अपने जज्बे की मिसाल रखने वाले होंगे कोंग शहर की कहानी क्रिकेट जगत में भी हौंसले और जज्बे का बेहतरीन उदाहरण है।
नारद टीवी की स्पेशल सीरीज know your country में आज की इस विडियो में हम आपको इसी खूबसूरत शहर के क्रिकेट सफर पर लेकर चलेंगे जहां हर कदम पर एक कुछ नया और अद्भुत सीखने को मिलेगा।
4 सितंबर साल 1839 को पहले ओपियम युद्ध का शंखनाद हुआ जिसे बहुत से इतिहासकार चाइना के आधुनिकीकरण की शुरुआत भी मानते हैं।
लगभग तीन साल चले इस युद्ध में ब्रिटिश हुकूमत की जीत हुई और इसका परिणाम यह रहा है होंग कोंग भी कोलोनीज की उस बड़ी भीड़ में शामिल होने के लिए मजबूर हो गया था जिनकी संख्या ब्रिटिश हुकूमत के तले लगातार बढ़ती जा रही थी।
युद्ध के दौरान ही होंग कोंग की धरती पर साल 1841 में पहला ऐसा क्रिकेट मैच खेला गया जिसके रिकॉर्ड आज भी मिलते हैं, इस तरह होंग कोंग भी लगभग सभी देशों और शहरों की सूची में शामिल हो गया जहां क्रिकेट ने अधीनता और बंधन की स्थिति में अपने पैर पसारना शुरू किया था।
इस सूची में शामिल बाकि कोलोनिज की तरह ही होंग कोंग में अंग्रेजी हुकूमत ने इस खेल को अच्छा सहयोग दिया और यहां के लोगों ने भी इस नये खेल को अपनाने में ज्यादा समय नहीं लगाया, होंग कोंग के आम लोगों के बीच यह खेल अपनी जगह बनाने लगा और इन सब बदलावों को देखकर यह लगने लगा था कि यह शहर भी आगे चलकर क्रिकेट में कुछ अच्छा करने की काबिलियत रखता है।
साल 1851 में होंग की धरती पर पहला क्रिकेट क्लब स्थापित हुआ जिसने यहां इस खेल को एक नया आयाम देने का काम किया।
क्रिकेट जो उस समय तक दुनिया में अच्छी खासी पहचान बना चुका था, होंग कोंग के जरिए इस खेल को चाइना के रूप में एक नई और अनूठी जगह मिल गई थी और अब समय था उस जगह पर अपने खिलाड़ियों को तैयार करने का जो आगे चलकर अलग-अलग टीमों के खिलाफ अपने हुनर को दुनिया के सामने रख सके और विश्व क्रिकेट के नक्शे पर एक नया बिन्दु आकार ले सके।
साल 1866 वह साल रहा जब होंग कोंग की धरती पर इन्टरपोर्ट क्रिकेट मैचों की शुरुआत हुई और पहला मैच संघाई और होंग कोंग के बीच खेला गया था।
शुरुआत हो गई थी और अब साल 1888 वह साल रहा जब होंग कोंग की स्कूलों में भी नई पीढ़ी को इस खेल के लिए तैयार करने के लिए यह खेल शामिल कर लिया गया था।
बिशप बोयज स्कूल से यह सिलसिला शुरू हुआ, सबकुछ बड़ियां चल रहा था, होंग कोंग क्रिकेट जगत में अपने घुटनों के बल आगे बढ़ रहा था लेकिन वो कहते है ना कि इस दुनिया में कुछ आसान नहीं होता है, हर नई शुरुआत की कोई ना कोई कीमत हर किसीको चुकानी पड़ती है, कुछ ऐसा ही होंग कोंग के साथ भी होने वाला था।
साल 1890 में होंग कोंग क्रिकेट ने कुछ और आयाम हासिल किए लेकिन फिर साल 1892 में कुछ ऐसा होने वाला था जिसकी कल्पना किसीने भी नहीं की थी।
साल 1892 में होंग कोंग ने संघाई के खिलाफ दो इन्टरपोर्ट मैच खेले थे जिनमें से पहला मैच फरवरी महीने में खेला गया था, जिसमें जोन डन की कप्तानी में होंग कोंग की बेहतरीन टीम ने संघाई को एक पारी और 132 रनों से हराया था।
कप्तान डन ने शतकीय पारी खेलकर जहां अपनी टीम को बेहतर स्थिति में लाने का काम किया तो वहीं दूसरी तरफ इ जे कोक्सन और डोक्टर जे ए लोसन ने क्रमशः बारह और आठ विकेट लेकर विरोधियों को कहीं भी खड़े होने का मौका भी नहीं दिया था।
इस शानदार जीत के बाद जब होंग कोंग की टीम अक्टूबर में संघाई के लिए रवाना हुई तो सबकुछ बदल गया, टीम के कुछ प्रमुख खिलाड़ियों ने अलग अलग कारणों के चलते मैच से अपना नाम वापस ले लिया और कुछ ऐसा ही संघाई टीम के साथ भी हुआ, यानि की यह मैच अब लगभग एक जैसी क्षमता रखने वाली टीमों के बीच होने वाला था।
मैच शुरू हुआ और संघाई के गेंदबाज ए जी एच कार्थर्स ने तेरह विकेट लेकर अपनी टीम को 157 रनों से मैच जिताने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
8 अक्टूबर साल 1892 को एस एस बोखारा नामक समुद्री जहाज 148 लोगों के साथ संघाई से होंग कोंग के लिए रवाना हुआ, उस समय शायद किसीको अंदाजा भी नहीं था कि ये यात्रा उनकी जिंदगी में किस तरह का अनुभव लाने वाली है।
यात्रा की शुरुआत अच्छी हुई लेकिन फिर समुद्र में अचानक कुछ हलचल होने लगी, हवाएं तेज हो गई, यह महसूस होने लगा कि कुछ बहुत बुरा घटित होने वाला है।
ऐसा ही हुआ, दुसरे दिन जहाज टाइफून में फंस गई और फिर शुरू हुआ खुद को किसी तरह बचाने का प्रयास, जिसमें बहुत कम लोग ही सफल हो पाये, हालात बद् से बद्तर होने लगी लेकिन ना ही होंगकोंग को और ना ही संघाई को इस घटनाक्रम की भनक भी नहीं मिल पाई थी।
फिर जब काफी समय गुजरने के बाद भी जहाज अपनी मंजिल पर नहीं पहुंचा तो होंग कोंग से सर्च ओप्रेशन शुरू हुआ लेकिन तब तक बहुत देर हो गई थी, तीन तेज समुद्री लहरों ने जहाज को तहस नहस कर दिया था जिससे जहाज में सवार 125 लोग डूब गए जिनमें ग्यारह होंग कोंग के खिलाड़ी भी थे।
सिर्फ 23 लोगों को इस दुर्घटना में मछुआरों की मदद से बचाया जा सका और इस आंकड़े में होंग कोंग के खिलाड़ियों की संख्या सिर्फ दो ही थी, इनमें से एक खिलाड़ी लोसन को बाद में फेफड़ों में पानी भर जाने के कारण अपना एक फेफड़ा निकलवाना पड़ा था।
इस घटनाक्रम ने संघाई और होंग कोंग से लेकर पुरी दुनिया को सख्ते में डाल दिया था लेकिन होंग कोंग क्रिकेट जिसे इस घटना का सबसे बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ा उसने एक जगह खड़े रह जाने की जगह आगे बढ़ना जारी रखा और एक बड़ी दुर्घटना से खुद को उबारकर नई सदी में बिल्कुल नई तरह से सामने आई।
साल 1894 में होंग कोंग क्रेगेन्गोर क्रिकेट क्लब और फिर साल 1897 में होंग कोंग पारसी क्रिकेट क्लब की शुरुआत भी हो गई थी।
होंग कोंग क्रिकेट जो एक बड़ी त्रासदी को भुलाकर आगे बढ़ रही थी उसके लिए क्लब क्रिकेट अब एक नया सहारा बनकर सामने आया और यहां मिली सफलताओं को देखते हुए साल 1903 के आखिर तक आते आते होंग कोंग में फस्ट डिवीजन लीग क्रिकेट की शुरुआत भी हो गई थी।
अगले आठ सालों में होंग कोंग में चार अलग-अलग क्रिकेट क्लब वजूद में आये जिसके बाद पहले विश्व युद्ध के दौरान यहां क्रिकेट का खेल पुरी तरह से बंद कर दिया गया था।
साल 1918 में इंडिया रिक्रिएशन क्लब की स्थापना के साथ होंग कोंग में एक बार फिर क्रिकेट का आगाज हुआ और फिर यहां सेंकेड डिवीजन क्रिकेट भी शुरू हो गया।
होंग कोंग एशिया में क्रिकेट की सबसे बड़ी ताकत बनकर उभर रहा था।
साल 1948 में होंग कोंग ने संघाई के खिलाफ अपना आखिरी इन्टरपोर्ट मैच खेला और इस तरह होंग कोंग क्रिकेट की जड़ का एक महत्वपूर्ण भाग हमेशा के लिए लगभग खत्म हो गया था।
साल 1952 में जब होंग कोंग क्रिकेट अपनी शुरुआत के शानदार 100 साल पुरे होने का जश्न मना रही थी तब अपने आसपास की टीमों के बीच खत्म हो रही यहां की क्रिकेट प्रतिभा को निखारने के लिए पहली बार एक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट टीम से खेलने का मौका मिला, आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी जैक च्विगन अपनी टीम के साथ होंग कोंग आये और यहां की अलग अलग टीमों के साथ मैच खेला।
साल 1966 आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड दौरे से वापस आ रही एमसीसी की टीम ने भी होंग कोंग का दौरा किया और इस तरह अब होंग कोंग क्रिकेट अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी प्रतिद्वंदिता के खिलाफ भी अपना हुनर आज़मा रही थी जो यहां के खिलाड़ियों के लिए बहुत बड़ी बात थी।
फिर आया साल 1969 होंग कोंग क्रिकेट असोसिएशन को अपनी लंबी और कड़ी मेहनत का फल हासिल हुआ, आईसीसी ने यहां की टीम को असोसिएट सदस्यों में शामिल करने का फैसला लिया और साथ ही यहां की डोमेस्टिक क्रिकेट का नाम बदलकर संडे और सैटरडे लीग्स रख दिया था।
अगले कुछ सालों में होंग कोंग क्रिकेट बहुत से बदलावों से गुजरा, संडे और सैटरडे लीग्स को फिर से फस्ट डिवीजन और सेंकेड डिवीजन में बांट दिया गया और कुछ नये टुर्नामेंट्स की शुरुआत भी हुई।
साल 1982 में होंग कोंग नेशनल क्रिकेट टीम ने पहली बार आईसीसी ट्रोफी में हिस्सा लिया, इजरायल और जिब्राल्टर को हराकर इस टीम ने यह टुर्नामेंट पांचवें स्थान पर खत्म किया लेकिन वर्ल्डकप के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाई।
साल 1983 में भारत विश्व चैंपियन बना और एशिया का विश्व क्रिकेट में एक दबदबा कायम होने लगा, बहुत सी नई टीमें बनने लगी, एशिया अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में नई महाशक्ति के रूप में उभरने लगा था।
साल 1987 में होंग कोंग क्रिकेट टीम ने अपना आखिरी इन्टरपोर्ट मैच सिंगापुर के खिलाफ खेला जिसके बाद यह सिलसिला भी खत्म हो गया, 1992 का साल होंग कोंग क्रिकेट के लिए शानदार रहा।
इसी साल होंग कोंग क्रिकेट सिक्सेस की शुरुआत हुई और फिर इसी साल होंग कोंग में जन्मे डेरनोट रिव को इंग्लैंड के लिए खेलने के लिए चुन लिया गया था।
साल 1994 में जहां एक तरफ होंग कोंग ने आईसीसी ट्रोफी में आठवां स्थान हासिल किया तो वहीं इसी साल होंग कोंग क्रिकेट को अपना पहला फुल टाइम कोचिंग स्टाफ भी मिल गया था।
होंग कोंग क्रिकेट अब धीरे धीरे अपने पैरों पर खड़ा होने लगा था, साल 1997 में इस शहर ने पहली बार एक इंटरनेशनल मैच होस्ट किया जो ओस्ट्रेलिया और रेस्ट ओफ द वर्ल्ड के बीच खेला गया था।
साल 2000 में आयोजित हुई एसीसी ट्रोफी कम्पीटीशन को रनर अप के तौर पर खत्म करने के बाद होंग कोंग को अगले एशिया कप में खेलने का मौका मिला और यहां इस देश ने अपने सबसे पहले रिकॉर्डेड क्रिकेट मैच के लगभग 130 साल बाद अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय वनडे मैच खेला, एक लंबी तपस्या में लीन इस शहर को आखिरकार अपनी आंखें खोलने का मौका मिल गया था।
16 जुलाई साल 2004 के दिन बांग्लादेश के खिलाफ श्रीलंका के मैदान पर होंग कोंग ने अपना पहला वनडे मैच खेला लेकिन जीत हासिल नहीं हुई और फिर पाकिस्तान के खिलाफ भी इस टीम को हार का सामना करना पड़ा लेकिन एक शुरुआत हो गई थी।
इसी साल होंग कोंग की महिला क्रिकेट टीम ने भी पहली बार संघाई का दौरा किया और इस तरह एक और अच्छा और नया सिलसिला भी यहां से शुरू हो गया था।
इसी साल हुसैन भट्ट ने सैटरडे लीग फिक्सर में नाबाद 311 रनों की उस ऐतिहासिक पारी को भी अंजाम दिया जिसे आज भी असोसिएट सदस्यों की किसी भी खिलाड़ी की किसी स्तर पर खेली गई सबसे बेहतरीन पारियों में गिना जाता है।
Acc ट्रोफी, डीविजन क्रिकेट और एशिया कप जैसे मंचों के सहारे होंग कोंग का कारवां चल रहा था, यहां अब क्रिकेट का खेल पुरी तरह से अपने पैर जमा चुका था।
16 मार्च साल 2014 के दिन होंग कोंग को अपना पहला टी20 मैच नेपाल के खिलाफ खेलने का मौका मिला, होंग कोंग क्रिकेट आगे बढ़ रहा था लेकिन यहां की आर्थिक स्थिति टीम को कुछ भी नया करने नहीं दे रही थी।
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होंग कोंग क्रिकेट के खिलाड़ियों से लेकर क्रिकेट स्ट्रक्चर हर कोई खराब आर्थिक स्थिति से गुजर रहा था, पाकिस्तान से लेकर भारत से आए बहुत से लोग यहां की क्रिकेट से जुड़े हुए थे और लगभग सभी खिलाड़ियों को अपने खर्च उठाने के लिए डिलीवरी बोय और साइड बिजनेस जैसे काम करने पड़ रहे थे।
साल 2018 में हुए आईसीसी वर्ल्ड कप क्वालीफायर में होंग कोंग ने अफगानिस्तान को हराकर ओडीआई क्रिकेट में आईसीसी के फुल मेम्बर्स लिस्ट में शामिल देश के खिलाफ अपनी पहली जीत हासिल की, यहां के खिलाड़ियों के चेहरे पर इस मैच के बाद फैली मुस्कान यह बताने के लिए काफी थी कि उन्होंने ये पल अनुभव करने के लिए कितना लंबा संघर्ष किया है।
निजाकत खान, बाबर हयात, मोहम्मद गजनाफर और एहसान खान जैसे अच्छे खिलाड़ियों के इर्द-गिर्द यह टीम अब सबकुछ पीछे छोड़कर अपने खेल को बेहतर बनाने पर काम कर रही है जिसमें आर्थिक स्थिति और मौकों की कमी सबसे बड़ी चुनौतियां बनी हुई है।
बहुत से रिकॉर्ड और कई बेहतरीन प्रदर्शन खुद में समेटे होंग कोंग के खिलाड़ी अब अपनी स्थिति से उपर उठकर टेस्ट स्टेटस का इंतजार कर रहे हैं, अब वो मौका कब आयेगा ये तो पता नहीं लेकिन होंग कोंग क्रिकेट हार नहीं मानेगी ये हर किसीको यकीन है क्योंकि होंग कोंग आज जहां खड़ा है वहां तक पहुंचने के लिए यहां के लोगों ने लगभग 150 सालों का इंतजार किया था।
तो इसी उम्मीद के साथ कि होंग कोंग क्रिकेट अपनी बुलंदियों का आसमान जल्द ही फतह करेगी आज की इस विडियो में बस इतना ही मिलते हैं आपसे अगले एपिसोड में तब तक के लिए नमस्कार।+