भारत को विश्व क्रिकेट में हमेशा से स्पिन गेंदबाजों की धरती के रुप में देखा जाता है और इस बात में कोई भी दोराहे नहीं है कि इस देश ने समय समय में विश्व क्रिकेट को एक से बढ़कर एक स्पिन गेंदबाज दिए हैं।
लेकिन एक बात यह भी सच है कि आज इस स्पिन गेंदबाजों की धरती पर एक से बढ़कर एक खूंखार तेज गेंदबाज भी मौजूद है, आज विश्व क्रिकेट का वो देश कई बड़े तेज गेंदबाजों का घर है जिसे कभी इस बात के लिए दुत्कार दिया जाता था कि यह देश तेज गेंदबाज पैदा नहीं कर सकता है।
दुसरे देश ही क्यों खुद हमारे लोग भी यह मानने को तैयार नहीं थे कि हमारा देश कभी तेज गेंदबाजों के मामले में भी धनवान बन सकता है। बिल्कुल शुरू से शुरू करने पर पता चलता है कि अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट में कदम रखने से पहले एक समय ऐसा भी था।
जब भारत के पास अपने दौर के सबसे घातक तेज गेंदबाज हुआ करते थे लेकिन ये गेंदबाजों ने फस्ट क्लास क्रिकेट तक ही सिमट कर रह गए थे इन्हें कभी भी भारत के लिए अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट खेलने का मौका नहीं मिला था।
कहा जाता है कि अगर भारत का पर्दापण अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट में कुछ समय पहले हो जाता तो भारतीय क्रिकेट टीम एक लंबे समय तक अपनी तेज गेंदबाजी के दम पर विश्व क्रिकेट में अपना प्रभाव डाल सकती थी।
आखिर क्यों कुछ बिख्यात खिलाडी इतिहास में कहीं खो गए-
लेकिन ऐसा नहीं हुआ और पावरी, देव राज पुरी, मोहम्मद बका खान जिलानी और नाजिर अली जैसे नाम इतिहास में कहीं खो गए।
साल 1920 तक भारत में ऐसे कई तेज गेंदबाजों का प्रभाव रहा था जिन्होंने क्लब क्रिकेट और फस्ट क्लास क्रिकेट खेलने वाली हर विदेशी टीम को भारत और भारत के बाहर के मैदानों पर कड़ी टक्कर दी थी।
फिर आया साल 1932 भारत की पहली अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट टीम 26 फस्ट क्लास मैच और एक अन्तर्राष्ट्रीय टेस्ट मैच खेलने इंग्लैंड रवाना हुई थी और इस टीम में अमर सिंह के साथ उनके जोड़ीदार मोहम्मद निसार भारतीय टीम के तेज गेंदबाजी पक्ष को सम्भाल रहे थे।
अमर सिंह भारत के पहले खिलाड़ी थे जिन्हें टेस्ट कैप दी गई थी तो वहीं पंजाब के होशियारपुर से सम्बन्ध रखने वाले मोहम्मद निसार उस समय के सबसे तेज गेंदबाजों में गिने जाते थे।
25 जून साल 1932 यही वह दिन था जब भारतीय टीम लोर्डस स्टेडियम पर अपना पहला टेस्ट मैच खेलने उतरी थी और इंग्लैंड यहां पहले बल्लेबाजी कर रही थी।
यह वो दौर हुआ करता था जब पीच को कवर नहीं किया जाता था इसलिए मैदान तेज गेंदबाजों के लिए मददगार साबित हुआ करते थे और इसी मदद का फायदा उठाकर मोहम्मद निसार ने अपने दुसरे ओवर में इंग्लैंड के ओपनर बल्लेबाज सरक्लिप्स को बोल्ड कर दिया था और उसके तुरंत बाद होम्स ने भी निसार की तेज तर्रार गेंद के सामने घुटने टेक दिए थे।
पहले तीस मिनट में इंग्लैंड का स्कोर 19 रन पर तीन विकेट हो गया था जिनमें से दो विकेट निसार के खाते में आए थे और एक बल्लेबाज रनाउट हो गया था।
निसार खान –
निसार किस दर्जे के गेंदबाज थे इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जिन दो बल्लेबाजों को निसार ने पहले तीस मिनट में ही आउट कर दिया था उन्होंने दस दिन पहले ही फस्ट क्लास क्रिकेट में 555 रनों की रिकॉर्ड साझेदारी की थी।
भारत यह मैच आखिर में हार गया था लेकिन भारत के इन दो गेंदबाजों ने इंग्लैंड सहित पुरे विश्व में अपनी धारदार गेंदबाजी के दम पर पहचान बना ली थी और इन्हीं दो गेंदबाजों को देखते हुए इंग्लैंड के कप्तान डगलस जार्डिन ने कहा था कि भारतीय क्रिकेट टीम आने वाले दस सालों में विश्व क्रिकेट की बेहतरीन टीमों में शुमार हो जाएगी।
लेकिन जिन दो खिलाड़ियों के भरोसे यह सब कहा गया था उनमें से एक मोहम्मद निसार भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए थे और वहां की अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के पहले खिलाड़ी बन गए थे साथ ही पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड की नींव रखने में भी निसार की अहम भूमिका रही थी।
अमर सिंह-
दुसरी तरफ अमर सिंह को निमोनिया हो गया था और इस रोग ने साल 1940 में यह बेहतरीन गेंदबाज हमसे छीन लिया था।
बात करें इन गेंदबाजों के पुरे करियर की तो निसार ने भारत की तरफ से कुल छः मैच खेले थे जिनमें इनकी विकेटों का आंकड़ा 25 था तो वहीं अमर सिंह ने सात मैचों में 28 विकेट लिए थे।
इन दोनों गेंदबाजों के बाद भारत ने तेज गेंदबाजों को ढुंढ ने के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया, अगले बारह सालों तक भारतीय टीम की कोशिश होती थी कि शुरू में कोई एक गेंदबाज भले ही वो स्पेशलिस्ट बल्लेबाज हो वो गेंद को पुराना कर देगा और आगे का काम भारत के स्पिन गेंदबाजों के जिम्मे आ गया था।
लेकिन इसके बाद आया साल 1959 रमाकांत देसाई नाम के एक लड़के ने अपने प्रदर्शन से और तेज गेंदबाजी से भारतीय क्रिकेट जगत को जागने पर मजबूर कर दिया।
साल 1959 में वेस्टइंडीज की टीम भारत आई थी और यहां खेले गए एक फस्ट क्लास मैच में रमाकांत देसाई ने चार विकेट लिए थे जिसमें से रोहन कन्हाई जैसे खिलाड़ी को बोल्ड कर इस गेंदबाज ने अपनी प्रतिभा को पुरी दुनिया के सामने रख दिया था।
इसके बाद देसाई को भारतीय टीम में शामिल किया गया और इस तेज गेंदबाज ने पहले वेस्टइंडीज और फिर पाकिस्तान के बल्लेबाजों को खूब परेशान किया, रमाकांत की सबसे खास बात यह थी कि वो सामने वाली टीम के सबसे बड़े बल्लेबाज के विरुद्ध सबसे अच्छा प्रदर्शन करते थे।
ऐसा ही कुछ उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ भी किया था, साल 1960 में ब्रेबोर्न स्टेडियम पर देसाई ने पहले तो हनीफ मोहम्मद की टोपी उछालकर जमीन पर गिरा दी और उसके बाद अगली ही गेंद पर उन्हें बोल्ड कर दिया था।
लेकिन रमाकांत के खिलाफ जो एक बात जा रही थी वो ये थी कि अपने समय में वो भारतीय टीम के इकलौते तेज गेंदबाज थे और इसलिए उन्हें हर मैच में लगातार 30 से 35 ओवर गेंदबाजी करनी पड़ती और कभी कभी यह आंकड़ा 49 तक भी पहुंच जाता था।
इतना वर्कलोड यह गेंदबाज सम्भाल नहीं पाया और फिर यही वजह रही कि सिर्फ 29 साल की उम्र में इस गेंदबाज ने क्रिकेट को अलविदा कह दिया था।
बात करें इनके करियर की तो अपने 28 मैचों में इस गेंदबाज के नाम 74 विकेट रहे थे।
रमाकांत देसाई के बाद भारतीय क्रिकेट में वो दौर भी आया जब मैदान पर कभी कोई बल्लेबाज भारत के लिए गेंदबाजी की शुरुआत करता तो कभी ऐसा समय भी आया जब विकेट कीपर से भी भारतीय कप्तान ने गेंदबाजी की शुरुआत करने के लिए कहा था।
इससे जुड़ा एक किस्सा यह भी सुनने को मिलता है कि जुलाई 1967 में भारतीय टीम इंग्लैंड गई थी और वहां सीरीज का तीसरा मैच एजबेस्टन के मैदान पर खेला जाने वाला था।
कहा जाता है कि यह पहला मौका था जब भारतीय टीम इस मैदान पर खेलने उतरी थी और इस मैच के लिए भारतीय अपनी स्पिन चौकड़ी के साथ खेलने उतरी थी जिसमें प्रसन्ना, वेंकटराघवन, बेदी और चन्द्रशेखर के नाम शामिल थे।
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टाइगर पटौदी-
भारत की कप्तानी टाइगर पटौदी के हाथों में थी साथ ही इस मैच में भारतीय टीम दो विकेट कीपर्स फारुक इंजीनियर और बुद्धि कुन्दर्न के साथ उतरी थी।
मैच से पहले वाली शाम पटौदी कुन्दर्न के पास गए और उनसे पुछा तुम किस तरह की गेंदबाजी कर सकते हो इसके जवाब में विकेट कीपर बल्लेबाज का जवाब था कि उसे नहीं पता वो किस तरह की गेंदबाजी कर सकता है।
इसके बाद अगले दिन पटौदी ने पहले ओवर के लिए गेंद कुन्दर्न के हाथों में थमा दी और इंजीनियर को कीपर के ग्लव्स दे दिए।
उस मैच में कुन्दर्न ने चार ओवर डाले और सिर्फ तेरह रन दिए थे।
इसके बाद आया सत्तर का दशक जिसमें भारत के अलावा लगभग हर टीम के पास अपने दो या चार तेज गेंदबाज मौजूद थे, आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और वेस्टइंडीज टीमों ने अपने तेज गेंदबाजों के बल पर क्रिकेट जगत में आतंक मचा रखा था।
लेकिन भारतीय टीम कब भी अपनी स्पिन गेंदबाजी पर ही भरोसा जता रही थी कभी तेज गेंदबाजों की जरूरत पड़ती तो सिर्फ गेंद को पुराना करने के लिए ही पड़ती थी या यूं कहें कि भारतीय टीम इससे ज्यादा तेज गेंदबाजों का प्रयोग किसी काम में कर भी नहीं सकती थी।
साल 1971 में अपना टेस्ट डेब्यू करने के बाद चार ऐसे मौके आए जब सुनील गावस्कर ने भारतीय गेंदबाजी की शुरुआत की थी।
भारतीय टीम का एक दौर इस तरह काम चलाऊ गेंदबाजों के साथ पारी की शुरुआत करते हुए गुजर गया था।
लेकिन इसके बाद जो हुआ उसने सबकुछ बदल दिया था, भारतीय क्रिकेट टीम में एक ऐसा आलराउंडर खिलाड़ी शामिल हुआ जिसने पहले कभी भी कोई भी टेस्ट मैच नहीं देखा था टीवी पर भी नहीं।
कपिल देव-
कपिल देव नाम का यह खिलाड़ी जब भारतीय टीम में आया तो भारत के लोग वर्षों बाद अपनी टीम में एक तेज गेंदबाज को देखने के लिए सिर्फ इनके नाम पर ही मैदानो में उमड़ पड़ते थे।
पाकिस्तान के खिलाफ जब कपिल देव ने अपना पहला ओवर डाला तो मैच देख रहे टाइगर पटौदी की आंखों में आंसू आ गए थे और उन्होंने भरी हुई आंखों के साथ अपने पास बैठे एक पत्रकार से कहा था कि काश मेरे पास भी एक ऐसा गेंदबाज होता देखो वो किस तरह की गेंदबाजी कर रहा है।
यह वाकिया सच में अपने आप में किसी को भी रुला देने की ताकत रखता है।
साल 1978 में कपिल देव ने अपना पहला मैच खेला था और यह वो समय भी था जब भारतीय टीम की स्पिन चौकड़ी धीरे धीरे क्रिकेट से दुर हो रही थी जिसके बाद भारतीय टीम में अचानक एक से एक तेज गेंदबाज आते गए और भारतीय टीम अब विश्व क्रिकेट के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने लगी थी।
मदनलाल, मनोज प्रभाकर और चेतन शर्मा जैसे गेंदबाज भारतीय टीम का हिस्सा बने जिनके जोड़ीदार बनकर कपिल देव ने विश्व क्रिकेट में अपना खौफ कायम कर लिया था।
कपिल देव ने अपने टेस्ट करियर में कुल 434 विकेट अपने नाम किए थे जो उस समय तक विश्व क्रिकेट में किसी भी गेंदबाज के द्वारा लिए सबसे ज्यादा विकेटों का रिकॉर्ड था।
एमआरएफ पेस फाउंडेशन-
कपिल देव ने अपने दम पर एक बदलाव की नींव रख दी थी और उस पर अब एक महल खड़ा करने का काम एमआरएफ पेस फाउंडेशन को दिया गया जिसकी शुरुआत साल 1987 में चेन्नई में हुई थी।
इस फाउंडेशन के मैनेजिंग डायरेक्टर रवि ने आस्ट्रेलिया के सबसे सफल गेंदबाज डेनिस लिली को नये तेज गेंदबाजों की एक पौध तैयार करने का जिम्मा दिया जिसे उन्होंने बखूबी पुरा भी किया था।
कहते हैं कि जब एमआरएफ की शुरुआत हुई थी तब सचिन तेंदुलकर और सौरव गांगुली भी यहां तेज गेंदबाज बनने आए थे लेकिन उन्हें पहले सलेक्शन कैंप में रिजेक्ट कर दिया गया था।
जवागल श्रीनाथ-
डेनिस लिली ने भारत को कई बड़े गेंदबाज दिए जिनमें पहला सबसे बड़ा नाम जवागल श्रीनाथ का आता है जिन्होंने कपिल देव के रिटायर्ड हो जाने के बाद उनकी विरासत को संभालने का काम किया।
जवागल श्रीनाथ को मोहम्मद निसार के बाद भारत का सबसे तेज गेंदबाज भी माना गया था, साल 1999 में हुए वर्ल्डकप में वो सबसे तेज गेंद फेंकने के मामले में दुसरे स्थान पर रहे थे।
जाहिर खान-
पेस फाउंडेशन की दुसरी सबसे बड़ी खोज जाहिर खान थे जिन्होंने साल 2011 के वर्ल्डकप तक भारत की तेज गेंदबाजी को लीड करने का काम किया था और अपने आखिरी वर्ल्डकप में भारत को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी।
सत्रह साल की उम्र में जब जहिर खान पेस फाउंडेशन पहुंचे थे तो लीली ने पहली ही नजर में इनके हुनर को परख लिया था और इन्हें एक खास तरह से तैयार करने में जुट गए जिसके चलते जब जहिर खान ने क्रिकेट को अलविदा कहा तो इनके नाम 311 टेस्ट विकेट थे।
भारत में धीरे धीरे एक बड़ा बदलाव हो रहा था, भारतीय टीम अब धीरे धीरे अपने सबसे अच्छे पेस अटैक को तैयार करने की तरफ बढ़ रही थी।
जहिर खान के अलावा आशीष नेहरा, इरफान पठान और आरपी सिंह जैसे कई गेंदबाज भी भारत ने बढ़ते समय के साथ मैदान पर देखें जिन्होंने अपनी अपनी तरह से भारतीय क्रिकेट को समृद्ध करने का काम किया था।
25 साल तक के अपने करियर में भारत को 21 से ज्यादा सफल तेज गेंदबाज देने के बाद साल 2012 में डेनिस लिली ने एमआरएफ पेस फाउंडेशन से रिटायरमेंट की घोषणा कर दी जिसके बाद से ग्लेन मैकग्राथ उनकी जगह यह जिम्मेदारी निभा रहे हैं।
आज भारतीय क्रिकेट टीम के पास विश्व क्रिकेट का सबसे मजबूत पेस अटैक है जिसमें जसप्रीत बुमराह, मोहम्मद शमी, मोहम्मद सिराज, उमेश यादव और इंशात शर्मा जैसे धाकड़ नाम शामिल हैं जो किसी भी बल्लेबाजी लाइनअप को कहीं भी घुटने टिकाने पर मजबूर कर सकते हैं।
आज की इस कामयाबी में इतिहास की लम्बी तपस्या जुड़ी हुई है ऐसे कई नाम हैं जिनके बिना यह सफलता मुमकिन नहीं थी।
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